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________________ गापा : ७६ ] पंचमो महाहियारो [२३३ विशेषार्थ --पदका जितना प्रमाण हो उतने स्थानमें २ का अङ्क रखकर परस्पर गुणा करें। जो लब्ध प्राप्त हो उसमेंसे एक घटाकर शेष में एक कम गाला भाय ना. जो लब्ध आबे, उसका मुखमें गुणाकर देनेसे सङ्कलित धनका प्रमाण प्राप्त होता है। इस नियमानुमार सङ्कलित धन-यहाँ पद प्रमाण ७ और मुख प्रमाण २८००० है अत: - २८००० x [ {( २x२x२x२x२x२x२ ) - १} : (२ - १)] - ३५५६००० एक अनीककी सात कक्षाओंका प्रमाण पोर ३५५६००० x ७ = २४८६२००० मातों अनीकोंका कुल एकत्रित प्रमाण है । अथवा-. कक्षाएं हाथी घोड़ा । पदाति | रथ । गन्धर्व नर्तक बैल ५६००० प्रथम २८००० २८००० | २८००० २८००० २८००० २८००० २८००० द्वितीय [५६००० | ५६००० ५६००० । ५६००० | ५६००० ५६००० | ११२००० | ११२००० ११२००० | ११२०००/११२००० ११२००० चतुर्थ २२४०००२२४००० २२४००० २२४००० ०२२४०००२२४००० पञ्चम | ४४८००० ४४८०००/४४८०००४४८००० ४४८०००/४४८००० ११२००० २२४००० षष्ठ ८९६०००८९६००० ८९ १०००८९६०००८९६००० | ८९६००० सप्तम १७९२०००१७९२०००१७९२०००/१७९२०००१७९२०००१७२२०००/१७९२००० योग ३५५६०००|३५५६०००३५५६०००३५५६०००३५५६०००३५५६०००/३५५६००० - + १५४ * + २४८९२००० कुल इन्द्र १६ हैं और सभी समान अनीक-धनके स्वामी हैं अत: २४८६२०००४१६= ३९८२७२००० सम्पूर्ण व्यन्तरदेवोंकी सेनाका सर्वधन है । प्रकीर्णकादि व्यन्तरदेवोंका प्रमाण -- भोमिवाण पडण्णय-अभिजोग्ग-सुरा हवंति जे केई । तारणं पमाण - हेदू उवएसो संपइ पणट्ठो ॥७६॥
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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