________________
२२६ ]
तिलोयपण्णत्ती काल, ये पिशाचोंके इन्द्र हैं तथा इन इन्द्रोंके कमला, कमलप्रभा, उत्पला एवं सुदर्शना नामक (बो-दो) देवियाँ हैं ।।४८-४९।।
पिशाचोंका कथन समाप्त हुआ।
गणिका महत्तरियोंका निरूपणसोलस- भोम्मिदाणं, किंगर-पहुदोण होत्ति पत्तक्कं ।
गणिका महद्धियानो', दुवे दुवे रुववत्तोओ ॥५०॥
अर्थ-किन्नर प्रादि सोलह व्यन्तरेन्द्रों से प्रत्येक इन्द्र के दो-दो रूपवती गणिकामहत्तरी होती हैं ॥५०॥
महुरा महुरालाथा, सुस्सर-मिदुभासिरणीनो णामेहिं । पुरिसपिय-पुरिसकंता, सोमानो पुरिससिणिया ॥५१॥ भोगा - भोगवदीओ, भजगा भुजगप्पिया य णामेणं । विमला सुघोस • णामा अणिविधा सुस्सरक्खा य ॥५२॥ तह य सुभदा भद्दाओ मालिणी पम्ममालिणीयो वि । सम्वसिरि • सवसेणा, रुद्दावइ रुद्द - णामा य ॥५३॥ भूदा य भूदकंता, महबाहू भूवरत्त - णामा य ।
अंबा य कला णामा, रस-सुलसा तह सुदरिसणया ॥५४॥ अर्थ-मधुरा, मधुरालापा, सुस्वरा, मृदुभाषिणी, पुरुषप्रिया, पुरुषकान्ता, सौम्या, पुरुषदशिनी, भोगा, भोगवती, भुजगा, भुजगप्रिया, विमला, सुघोषा, अनिन्दिता, सुस्वरा, सुभद्रा, भद्रा, मालिनी, पपमालिनी, सर्वश्री, सर्वसेना, रुद्रा, रुद्रवती, भूता, भूतकान्ता, महाबाहू, भूतरक्ता, अम्बा, कला, रस-सुरसा और सुदर्शनिका, ये उन गणिका-महत्तरियोंके नाम हैं ।। ५१-५४।।
___ व्यन्तरोंके शरीर-वर्णका निर्देशकिणरदेवा, सव्वे, पियंगु - सामेहि देह - वणेहि ।
उम्भासते कंचण • सारिच्छेहि पि किंपुरुसा ।।५।। अर्थ-सब किन्नर देव प्रियंगु सदृश देह वर्णसे और सब किम्पुरुषदेव सुवर्ण सदृश देह- वर्णसे शोभायमान होते हैं ।।५५॥
कालस्सामल-वण्णा, महोरया अच्च कंधण-सवण्णा । गंधवा जक्खा तह, कालस्सामा विराजंति ॥५६॥
.
.
१. द. ब. क.ज. महच्चियामो। २. द. ब, क. ज. देसिगिया। ३. द. ब. क. ज, जम।