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________________ २२४ ] तिलोयपात्ती [ गाथा : ४०-४४ इन्द्र तथा इन इन्द्रोंके भोगा, भोगवती, अनिन्दिता और पुष्पगन्धी नामक ( दो-दो ) देवियाँ होती हैं ।। ३८-३९।। महोरग जातिके देवोंका कथन समाप्त हुआ। गन्धर्वदेवोंके भेद आदिहाहा-हूहू-रणारच-तुबुर-वासव-कदंब - महसरया । गोदरदी - गोक्यसा, बहरवतो होति गंधवा ॥४०।। गोदरदी गोदयसा, इंदा ताणं पि होंति देवीश्रो। सरसइ-सरसेणाग्रो, दिणि-पियनसणालो वि ॥४१॥ गंधव्या गदा । अर्थ-हाहा, हूहू, नारद, तुम्बुरु, वासव, कदम्ब, महास्वर, गीतरति, गीतयश और वनवान्, ये दस भेद गन्धोंके हैं। इनके गीतरति और गीतयश नामक इन्द्र और इन इन्द्रोंके सरस्वती, स्वरसेना, नन्दिनी और प्रियदर्शना नामक ( दो-दो ) देवियाँ हैं ।।४०-४१।। गन्धर्वजातिके देवोंका कथन समाप्त हुआ। ___ यक्षदेवोंके भेद आदिग्रह माणि-पुण्ण-सेल-मणो-भद्दा भद्दका सुभद्दा य । तह सव्वभद्द-माणुस-धणपाल-सरूव - जक्खरखा ।।४२॥ जक्खुत्तम-मणहरषा, ताणं बे माणि पुण्ण-द्दिदा । कुवा - बहुपत्तामो, तारा तह उत्तमानो देवीओ ॥४३।। जक्खा गदा । अर्थ-माणिभद्र, पूर्णभद्र, शलभद्र, मनोभद्र, भद्रक, सुभद्र, सर्व भद्र, मानुष, धनपाल, स्वरूपयक्ष, यक्षोत्तम और मनोहरण, ये बारह भेद यक्षोंके हैं । इनके मारिणभद्र और पूर्णभद्र नामक दो इन्द्र हैं और उन इन्द्रोंके कुन्दा, बहुपुत्रा, तारा तथा उत्तमा नामक ( दो-दो ) देवियां हैं ।।४२-४३।। यक्षोंका कथन समाप्त हुना। राक्षसों के भेद आदिभीम-महभीम-विग्घा'-विणायका उदक-रक्खसा तह य । रक्खस - रक्खस - णामा, सत्तमया बम्हरक्खसया ॥४४। ----.-- -. . १. द. क. ज. विप्पू, व. भीप्पू ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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