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तिलोयपात्ती
[ गाथा : ४०-४४ इन्द्र तथा इन इन्द्रोंके भोगा, भोगवती, अनिन्दिता और पुष्पगन्धी नामक ( दो-दो ) देवियाँ होती हैं ।। ३८-३९।।
महोरग जातिके देवोंका कथन समाप्त हुआ।
गन्धर्वदेवोंके भेद आदिहाहा-हूहू-रणारच-तुबुर-वासव-कदंब - महसरया । गोदरदी - गोक्यसा, बहरवतो होति गंधवा ॥४०।। गोदरदी गोदयसा, इंदा ताणं पि होंति देवीश्रो। सरसइ-सरसेणाग्रो, दिणि-पियनसणालो वि ॥४१॥
गंधव्या गदा । अर्थ-हाहा, हूहू, नारद, तुम्बुरु, वासव, कदम्ब, महास्वर, गीतरति, गीतयश और वनवान्, ये दस भेद गन्धोंके हैं। इनके गीतरति और गीतयश नामक इन्द्र और इन इन्द्रोंके सरस्वती, स्वरसेना, नन्दिनी और प्रियदर्शना नामक ( दो-दो ) देवियाँ हैं ।।४०-४१।।
गन्धर्वजातिके देवोंका कथन समाप्त हुआ।
___ यक्षदेवोंके भेद आदिग्रह माणि-पुण्ण-सेल-मणो-भद्दा भद्दका सुभद्दा य । तह सव्वभद्द-माणुस-धणपाल-सरूव - जक्खरखा ।।४२॥ जक्खुत्तम-मणहरषा, ताणं बे माणि पुण्ण-द्दिदा । कुवा - बहुपत्तामो, तारा तह उत्तमानो देवीओ ॥४३।।
जक्खा गदा । अर्थ-माणिभद्र, पूर्णभद्र, शलभद्र, मनोभद्र, भद्रक, सुभद्र, सर्व भद्र, मानुष, धनपाल, स्वरूपयक्ष, यक्षोत्तम और मनोहरण, ये बारह भेद यक्षोंके हैं । इनके मारिणभद्र और पूर्णभद्र नामक दो इन्द्र हैं और उन इन्द्रोंके कुन्दा, बहुपुत्रा, तारा तथा उत्तमा नामक ( दो-दो ) देवियां हैं ।।४२-४३।।
यक्षोंका कथन समाप्त हुना।
राक्षसों के भेद आदिभीम-महभीम-विग्घा'-विणायका उदक-रक्खसा तह य । रक्खस - रक्खस - णामा, सत्तमया बम्हरक्खसया ॥४४।
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१. द. क. ज. विप्पू, व. भीप्पू ।