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गाया : ३६-३९ ]
पंचमी महाहियारो
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अर्थ - किम्पुरुष, किन्नर, हृदयङ्गम, रूपपाली, किन्नरकिन्नर, अनिन्दित, मनोरम, किन्नरोत्तम, रतिप्रिय और ज्येष्ठ, ये दस प्रकारके किन्नर जातिके देव होते हैं। इनके किम्पुरुष और किन्नर नामक दो इन्द्र तथा इन इन्द्रोंके अवतंसा, केतुमती, रतिसेना एवं रतिप्रिया नामक ( दो-दो ) देवियाँ होती हैं ।। ३४-३५।।
किसका कथन समाप्त हुआ ।
किम्पुरुषोंके भेद आदि
पुरुसा पुरुसुतम सप्पुरुस - महापुरुस - पुरुषपभ- णामा । अतिपुरुसा तह महओ', मरुवेव- मरुप्पहा जसोवंता ॥३६॥ इय किपुरुसा-इंदा, सप्पुरुसो ताथ तह महापुरुसो । रोहिणी हरिया, पुरफवदीओ वि देवीश्री ॥३७॥
किपुरुसा गदा ।
अर्थ- पुरुष, पुरुषोत्तम, सत्पुरुष, महापुरुष, पुरुषप्रभ, अतिपुरुष, मरु, मरुदेव, मरुत्प्रभ और यशस्वान्, इसप्रकार ये किम्पुरुष जाति ( देवोंके ) दस भेद हैं। इनके सत्पुरुष और महापुरुष नामक दो इन्द्र तथा इन इन्द्रोंके रोहिणी, नवमी, ह्री एवं पुष्पवती नामक ( दो-दो ) देवियाँ होती हैं ।। ३६-३७।।
1 किम्पुरुषोंका कथन समाप्त हुआ । महोरगदेवोंके भेद आदि-
भुजगा भुजंगसाली, महतणु-अतिकाय खंधसाली य । मणहर प्रसणिज महसर, गहिरं पियदंसणा महोरगया ॥ ३८ ॥ महकाओं अतिकाश्री, इंदा एवारण होंति देवीयो ।
भोगा. भोगवदीश्रो, श्रणिविदा पुष्पगंधोश्रो ॥३६॥
महोरगा गया ।
अर्थ - भुजग, भुजंगशाली, महातनु, प्रतिकाय, स्कन्धशाली, मनोहर, अश निजब, महेश्वर, गम्भीर और प्रियदर्शन, ये महोरग जातिके देवोंके दस भेद हैं। इनके महाकाय और अतिकाय नामक
१. द. ब. क. ज. श्रमरा । २ द. ब. क. अ. ईद ।