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________________ गाया : ३६-३९ ] पंचमी महाहियारो [ २२३ अर्थ - किम्पुरुष, किन्नर, हृदयङ्गम, रूपपाली, किन्नरकिन्नर, अनिन्दित, मनोरम, किन्नरोत्तम, रतिप्रिय और ज्येष्ठ, ये दस प्रकारके किन्नर जातिके देव होते हैं। इनके किम्पुरुष और किन्नर नामक दो इन्द्र तथा इन इन्द्रोंके अवतंसा, केतुमती, रतिसेना एवं रतिप्रिया नामक ( दो-दो ) देवियाँ होती हैं ।। ३४-३५।। किसका कथन समाप्त हुआ । किम्पुरुषोंके भेद आदि पुरुसा पुरुसुतम सप्पुरुस - महापुरुस - पुरुषपभ- णामा । अतिपुरुसा तह महओ', मरुवेव- मरुप्पहा जसोवंता ॥३६॥ इय किपुरुसा-इंदा, सप्पुरुसो ताथ तह महापुरुसो । रोहिणी हरिया, पुरफवदीओ वि देवीश्री ॥३७॥ किपुरुसा गदा । अर्थ- पुरुष, पुरुषोत्तम, सत्पुरुष, महापुरुष, पुरुषप्रभ, अतिपुरुष, मरु, मरुदेव, मरुत्प्रभ और यशस्वान्, इसप्रकार ये किम्पुरुष जाति ( देवोंके ) दस भेद हैं। इनके सत्पुरुष और महापुरुष नामक दो इन्द्र तथा इन इन्द्रोंके रोहिणी, नवमी, ह्री एवं पुष्पवती नामक ( दो-दो ) देवियाँ होती हैं ।। ३६-३७।। 1 किम्पुरुषोंका कथन समाप्त हुआ । महोरगदेवोंके भेद आदि- भुजगा भुजंगसाली, महतणु-अतिकाय खंधसाली य । मणहर प्रसणिज महसर, गहिरं पियदंसणा महोरगया ॥ ३८ ॥ महकाओं अतिकाश्री, इंदा एवारण होंति देवीयो । भोगा. भोगवदीश्रो, श्रणिविदा पुष्पगंधोश्रो ॥३६॥ महोरगा गया । अर्थ - भुजग, भुजंगशाली, महातनु, प्रतिकाय, स्कन्धशाली, मनोहर, अश निजब, महेश्वर, गम्भीर और प्रियदर्शन, ये महोरग जातिके देवोंके दस भेद हैं। इनके महाकाय और अतिकाय नामक १. द. ब. क. ज. श्रमरा । २ द. ब. क. अ. ईद ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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