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तिलोयषण्णत्तो
[ गाथा : ३१-३५ पल्लंक-आसणाओ, सपाडिहेरानो रयण-मइयानो । सणमेत - णिवारिद - दुरिताओ तु वो मोक्खं ॥३१॥
चिण्हाणि समत्ताणि ॥३॥ अर्थ-पल्यङ्कासनसे स्थित, प्रातिहार्यों सहित और दर्शनमात्रसे हो पापको दूर करनेवाली बे रत्नमयो जिनेन्द्र-प्रतिमाएं आप लोगोंको मोक्ष प्रदान करें ।।३१॥
इसप्रकार चिन्होंका कथन समाप्त हुआ ॥३॥ व्यन्तरदेवोंके कुल-भेद, उनके इन्द्र और देवियोंका निरूपणकिणर-पहुधि-चउक्क, दस-रस-भेदं हयेवि पत्तक्कं । जक्खा जारल-मेदा. सता-निमणि रासार ३२॥ भूवाणि तेत्तियाणि, पिसाच-णामा पउद्दस-बियप्पा।
दो दो इंदा दो हो, वेवोनो दो-सहस्स-वल्लहिया ॥३३।। कि १०, किंपु १०, म १०, गं १०, ज १२, र ७, भू ७, पि १४ १ २ । २ । २००० ।
कुल-भेदा समत्ता ॥४।1 अर्थ---किन्नर आदि चार प्रकारके व्यन्तर देवोंमेंसे प्रत्येकके दस-दस, यक्षोंके बारह, राक्षसों के सात, भूतोंके सात और पिशाचोंके चौदह भेद हैं। इनमें दो-दो इन्द्र और उनके दो-दो ( अन) देवियाँ होती है। ये देवियाँ दो हजार बल्लभिकानों सहित ( अर्थात् प्रत्येक अग्रदेवीकी एक-एक हजार बल्लभिका देवियाँ ) होतो हैं 11३२-३३॥
कुल-भेदोंका वर्णन समाप्त हुआ ॥४॥ किन्नर जातिके दस भेद, उनके इन्द्र और उनकी देवियोंके नाम
ते फिपुरिसा किणर-हिदयंगम-रूयपालि-किंणरया । किणणिदिद गामा, मणरम्मा किंणरुतमया ॥३४॥ रतिपिय-जेट्टा तारणं, किंपुरिसा किंणरा दुवे इंदा । प्रयतंसा केनुमदी, रविसेरणा-रदिपियाओ देवीमो ॥३५॥
किणरा गदा।