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________________ २०८ ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : ३२२ उक्कस्सोगाहणं दीसइ । कम्हि खेत्ते कस्स वि जीवस्स कम्मि प्रोगाहणे वडमाणस्स होदि चि भणिवे सर्यपहाचल-परभाग-ट्ठिय-खेत्त-उपाण-पउमस्स उपकस्सोगाहरणा कस्सह दीसइ । तं केत्तिया इदि उत्ते उस्सेह-जोयणेए कोसाहिय-एक्क-सहस्सं उस्सेहं एक्कजोयण-बहलं समवट्ट । तं पमाणं जोयरण-फल ७५० । को १ । घणंगुले कदे दोणिलक्स-एक्कहचरि-सहस्स-अट्ठसय-अट्ठावण्ण-कोडि-चउरासीदि-लक्ख-ऊणहत्तरि - सहस्स-धुसय-अद्वत्ताल-रूबेहि गुणिद पमाणंगुलाणि होदि । तं चेदं ।।१।६।२७१८५८८४६६२४८ ॥ अर्थ-पश्चात् प्रदेशात्तर-नामस दो जावोंकी मध्यम-अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहनाक संख्यातगुणी प्राप्त होने तक चलता रहता है । तब बादर-वनस्पतिकायिक (९५) प्रत्येक शरीर नियंत्ति-पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। किस क्षेत्र और कौनसी अवगाह्नामें वर्तमान किस जीवके यह उत्कृष्ट अवगाहना होती है, इसप्रकार कहनेपर उत्तर देते हैं कि स्वयम्प्रभाचलके बाह्य भागमें स्थित क्षेत्रमें उत्पन्न किसी पद्म (कमल) के उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। वह कितने प्रमाण है ? इसप्रकार पूछने पर उत्तर देते हैं कि उत्सेध योजनसे एक कोस अधिक एक हजार योजन ऊंचा और एक योजन मोटा समवृत्त कमल है। उसकी इस अवगाहनाका घनफल योजनों में सातसौ पचास योजन और एक कोस प्रमाण है । इसके प्रमाण-घनांगुल करनेपर दो लाख इकहत्तरहजार आठ सौ अट्ठावन करोड़ चौरासी लाख उनहत्तर हजार दो सौ अड़तालोस ( २७१८५८८४६६२४८ ) रूपोंसे गुरिणत प्रमाण-घनांगुल होते हैं । विशेषार्थ- कमलको ऊँचाई १००० योजन और बाहल्य १ योजन है । वासो तिमुणो परिही, वास-चउत्था-हदो दु खेत्तफलं । खेत्तफलं वेह - गुणं, खातफलं होइ सब्बत्थ 11 इस गाथानुसार धनफल प्राप्त करनेका सूत्र एवं घनफलका प्रमाण इसप्रकार हैकमलका घनफल = ( व्यास x ३४ व्यास x ऊँचाई ) यथा ४ १६ - १४३४१ ४४००१ = १२००३ या ७५०१ घन योजन ! इन ७५० उत्सेध धन योजनोंके प्रमाणांगुल बनानेके लिये इनमें ! ७६८००० x ७६८००० x ७६८००० .. ८०" का गुणा करना चाहिए । यथा५००-५००४५००
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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