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________________ गाथा : ३२२ ] ७५० था अवगाहनाका घनफल है । पंचमी महाहियारो [ २०६ 2003 ' x ३६२३८७८६५६ = २७१८५८८४६९२४८ घनांगुल कमल को पर पंचेन्द्रिय जीव ( महामत्स्य) की सर्वोत्कृष्ट अवगाहना तदो पदेसुसर - कमेण पंचेंद्रिय - णिग्वत्ति-पज्जतयस्स मज्झिमोग्राहण- वियत्पं यच्चवि तरणंतरोगाहणं संखेज्ज-गुणं पत्तो सि । [तादे पंचेंधिय- णिश्वत्ति-पज्जरायस्स कस्तो गाणं दीes । ] तं कम्मि खेत्ते कस्स जोवस्स होदि ति उत्ते सपहाचलपरभागट्ठिए खेते उप्पण-संमुच्छिम महा मच्छस्स सव्वोक्करसोगाहणं कस्सइ बीसइ । तं केलिया इदि उसे उस्सेह-जोयणेण एक्क सहस्लायामं पंच-सय-विवखंभं तवद्ध-उस्सेहं । तं पमाणंगुले कीरमाणे चउ-सहस्स-पंच-सय- एकणतीस कोडीनो चुलसीदि- लक्ख-तेसीवि सहस्स दुसय कोडि रूवेहि गुणिक पमाण घणंगुलाणि हवंति । तं चेदं । ६ । ४५२६८४८३२००००००००० ॥ - = | एवं ओगाहण - विययं समतं ॥ १६ ॥ अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे पंचेन्द्रिय निवृत्ति पर्याप्तककी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहना के संख्यातगुणी प्राप्त होने तक चलता है। [द्र (९६) निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । ] यह अवगाहना किस क्षेत्रमें और किस जीवके होती है ? इसप्रकार पूछनेपर उत्तर देते हैं कि स्वयम्प्रभाचलके बाह्य भाग स्थित क्षेत्र में उत्पन्न किसी सम्मूच्छंन महामत्स्यके सर्वोत्कृष्ट श्रवगाहना दिखती है । वह कितने प्रमाण है ? इसप्रकार कहनेपर उत्तर देते हैं कि उसकी अवगाहना उत्सेध योजनसे एक हजार योजन लम्बी पांचसौ योजन विस्तारवालो और इससे आधी अर्थात् ढाई सौ योजन प्रमाण ऊंचाई वाली है । इसके प्रमाणांगुल करनेपर चार हजार पाँच सौ उनतीस करोड़ चौरासी लाख तेरासी हजार दो सौ करोड़ रूपोंसे गुणित प्रमाण- घनांगुल होते हैं । विशेषार्थ - महामत्स्यकी लम्बाई १००० उत्सेध यो०, विस्तार ५०० उत्सेध यो० और ऊँचाई २५० उ० यो० है । मत्स्यका घनफल लम्बाई x विस्तार × ऊंचाई - = १००० यो० X ५०० यो० x २५० यो० = १२५०००००० उत्सेध घन योजन । इन उत्सेध घनयोजनों के प्रमाणांगुल बनानेके लिए ७६८००० ४७६८००० x ७६८००० का गुणा करना चाहिए । ५००× ५००× ५०० यथा - १२५००००००३६२३८७८६५६ महामत्स्यके शरीरकी प्रवगाहनाका घनफल है। ४५२९८४६३२००००००००० घनांगुल इसप्रकार अवगाहना-भेदोंका कथन समाप्त हुआ ।। १६ ।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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