________________
गाथा : ३२२ ] पंचमो महाहियारो
[ २०७ एवेण सुत्तेण बाहल्ले प्राणिदे पंच-जोयण-पमाणं होवि ॥५॥
पर्ष-पायाममेंसे मुख' कम करके शेषमें फिर आयामको मिलाकर मुखका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना शंख के प्राकारसे स्थित क्षेत्रका बाहल्य जानना चाहिए ।।३२२।।
इस सूक्ष्म बाहत्यको लानेपर उसका प्रमाण पांच योजन होता है । विशेषार्थ-गाथानुसार सूत्र इसप्रकार हैशंखका बाल्य ( आयाम-मुख ) + मायाम
मुख
= (१२-४) + १२==५ यो० वाहस्य । पुदमाणोद-तेहत्तरि-भूद-खेत्तफलं पंच-जोयग-बाहल्लेण गुणिदे घण-जोयणा तिविण-सय-पण्णी होति । ३६५ । एवं घण-पमाणंगलाणि कदे एक्क-लक्ख-बत्तीस-सहस्स बोण्णि-सय-एक्कहत्तरी-कोडोओ सत्तावण्ण - लक्ख णव-सहस्स-चउ-सय-चालीस-रूबेहि गुणिद-घणंगुलमेदं होदि । तं चेई। ६ । १३२२७१५७०९४४० ॥
अर्थ - पूर्व में लाये हुए तिहत्तर वर्ग योजन प्रमाण क्षेत्रफलको पाँच योजन प्रमाण बाहल्यसे गुणा करनेपर तीनसौ पैंसठ (३६५) घन योजन होते हैं । इसके धन-प्रमारपांगुल करनेपर एक लाख बत्तीस हजार दो सौ इकहत्तर करोड़ सत्तावन लाख नौ हजार चार सौ चालीस (१३२२७१५७०९४४०) रूपोंसे गुणित घनांगुलप्रमाण होता है ।
विशेषार्थ-पूर्वोक्त ७३ उत्सेध वर्ग योजनोंको ५ योजन बाहल्यसे गुणित कर देनेपर ( ७३ ४ ५= ) ३६५ उत्सेध धन योजन प्राप्त होते हैं। इनके प्रमाणांगुल बनाने के लिए ७६८०००४७६८०००४७६८००० का गुणा करना चाहिए यथा५००-५००४ ५००
३६५४३६२३८७८६५६ = १३२२७१५७०९४४० घनांगुल शंखकी अवगाहनाका घनफल है। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर निति-पर्याप्तक (कमन) की
उत्कृष्ट अवगाहनातदो पदेसुत्तर - कमेण बोण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तवणंतरोगाहणं संखेज्ज-गुणं वत्तो ति। तादे बादर-वणप्फदिकाइय-पतेय-सरीर-णिबत्ति-पज्जत्तयस्स