SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा : ३२० J पंचमी महाहियारो [ २०५ अभागा हवंति । तं चेदं । ते पमाण-घणंगुला कीरमाणे एक्कलय' - पंचतीस - कोडीए उरण उदि लक्ख च उषण्ण- सहस्स-च उ-सय-छण्णउदि रूयेहिं गुणिद घगुलाणि हवंति । तं चेदं । ६ । १३५८६५४४६६ । - अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर - कमसे चार जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर श्रवगाहना संख्यात गुणी होने तक चलता रहता है। तब चारइन्द्रिय (९३) निर्वृत्ति पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। वह किस जीवके होती है, इसप्रकार कहनेपर उत्तर देते हैं कि स्वयम्प्रभाचलके बाह्य भागस्थ क्षेत्रमें उत्पन्न किसी भ्रमरके उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। वह कितने मात्र है, इसप्रकार कहने पर उत्तर देते हैं कि उत्सेध योजनसे एक योजन प्रमारण आयाम, आधा योजन ऊँचाई और अर्ध योजनकी परिधि प्रमारण विष्कम्भ को रखकर विष्कम्भके आधेको ऊँचाईसे गुणा करके फिर आयामसे गुणा करनेपर एक उत्सेध योजनके माठ भागों में से तीन भाग होते हैं । इनके प्रमाणांगुल करनेपर एक सौ पैंतीस करोड़ नवासी लाख चौपन हजार चारसो छयानबं रूपोंसे गुणित घनांगुल होते हैं । वह इसप्रकार है । ६ । १३५८९५४४९६ । विशेषार्थ-चतुरिन्द्रियजीव भ्रमरके शरीरकी अवगाहनाका प्रमाण उत्सेध योजनोंसे १ योजन लम्बा, ई योजन ऊँचा और ( ३४३ - १३ योजन चौड़ा है । उपर्युक्त कथनानुसार अर्ध योजन ऊँचाई की परिधि ( यो० ) के प्रमाण स्वरूप विष्कम्भके अर्धभाग (३) यो० को ऊंचाई और श्रायामसे गुरिणत करनेपर उत्सेध योजनोंमें ( 7 ) घन यो० घनफल प्राप्त होता है | इसके प्रमाण गुल बनानेके लिए - ( ७६८००० × ७६८००० ४७६८००० = ) ३६२३८७८६५६ ५००४५००× ५०० से गुणा करना चाहिए । यथा - ३ x ३६२३८७८६५६ = संख्यात घनांगुल ( ६ ) अथवा १३५८९५४४९६ घनांगुल भ्रमरकी अवगाहनाका घनफल है । कीन्द्रिय जीव ( शंख ) की उत्कृष्ट अवगाहना तदो पदेसुर- कमेण तिरहं मज्झिमोगाहण- वियप्पं वच्चवि तबणंतरोगाहणं संखेज्ज-गुणं पत्ती ति । तादे बीइंदिय णिव्वति पज्जतयस्स उक्कस्सोगाहणं होइ । तं कम्हि होइ ति भणिवे सयंपहाचल - परभाग-ट्ठिय-खेत्ते उप्पण्ण - बीइंदियरस ( संस्वहस ) उक्करसोगाणा कस्सइ दोसइ । तं केसिया इवि उत्ते बारस जोयणायाम - चउ-जोयणमुहस्स- खेत्तफलं - १. द ज एक्कस मयंक समय ब. क. एक्कस मयंकसेस य । २. य. ब. तदा ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy