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________________ २०४ } तिलोमपणती [ गाथा : ३२० पर्याप्तककी उत्कृष्ट श्रवगाहना दिखती है । ] यह अवगाहना किस जीवके होती है ? ऐसा पूछने पर उत्तर देते हैं कि स्वयम्प्रभाचलके बाह्य भागमें स्थित क्षेत्रमें उत्पन्न और उत्कृष्ट अवगाहनामें वर्तमान किसी गोम्ही के वह उत्कृष्ट भवगाहना होती है, यह उत्तर है । वह कितने प्रमाण है ? इसप्रकार कहनेपर उत्तर देते हैं कि उसका एक उत्सेध योजनके चार भागों में से तीन भाग प्रमाण श्रायाम, इसके आठवें भाग प्रमाण विस्तार और विस्तारसे आधा बाहुल्य है । इन तीनोंका परस्पर गुरणा करके प्रमाण घनांगुल करनेपर एक करोड़ उन्नीस लाख तैंतालीस हजार नौ सौ छत्तीस रूपोंसे गुणित नांगुल होते हैं । विशेषार्थ - असंख्यात द्वीपों में स्वयम्भूरमण अन्तिम द्वीप है, इस द्वीप के वलयव्यासके बीचों-बीच एक स्वयम्प्रभ नामक पर्वत है । इस पवतके बाह्य भागमें कर्मभूमिको रचना है । उत्कृष्ट अवगाहना वाले दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चार इन्द्रिय (स) जीव वहीं पाये जाते हैं । यहाँ स्थित श्रीन्द्रिय जीव गोम्ही (चींटी) का व्यास उत्सेध (व्यवहार) योजनसे योजन ( ६ मील), लम्बाई और योजन ( मील) और ऊँचाई योजन ( मील ) है । जिसका घनफल ( ३ यो० x ३ यो० X यो० ) और उत्सेध घन योजन प्राप्त होता है । जबकि एक योजनके ७६८००० अंगुल होते हैं तब धन योजनके कितने अंगुल होंगे? इसप्रकार राशिक करनेपर २७६८०००७६६००० X ७६८००० घनांगुल होते हैं । ये उत्सेध घनांगुल हैं । ५०० उत्सेध घनांगुलोंका एक प्रमाणांगुल होता है अतः उपर्युक्त उत्सेधांगुलोंके प्रमाणांगुल बनाने हेतु उन्हें ५०० के घनसे भाजित करनेपर ७६६०००७६८०००७६८००० ==३६२३=७८६५६ होते हैं। इनका गोम्हीक शरीरके उत्सेध घन योजनों में गुणा कर देनेपर * ३६२३८७८६५६ ) संख्यात घनांगुल ( ६ ) प्राप्त होते हैं । यहाँ घनांगुलका चिन्ह ५००×५०० x ५०० ( ६ है । अथवा—८१४३ × ३६२३८७८६५६-११९४३९३६ प्रमाण घनांगुल गोम्होको अवगाहनाका घनफल है । चतुरिन्द्रिय जीव ( भ्रमर ) की उत्कृष्ट अवगाहना तदो पत्तर- कमेण चदुन्हं मज्झिमोगाहण- वियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणं संखेज्ज-गुणं पत्तोति । तादे चउरिदिय णिवत्ति-पज्जत यस्स उपकस्सोगाहणं दीसह । तं कस्स होदित्ति भणिदे सयंपहाचल - परभाग-ट्ठिय-खेले उप्पण्ण- भमरस्स उक्कस्सोगाहणं nees बीसइ । तं केलिया इदि उत्ते उस्सेह-जोयणायामं श्रद्ध जोयणुस्सेहं जोयणद्धपरिहि विषभं विय विक्खंभद्ध मुस्सेह-गुणमायामेण गुरिणदे उस्सेह - जोयणस्स तिणि
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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