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________________ [ २८ ] उससे ३ योजन ऊपर गुरु, उससे ३ योजन ऊपर मंगल और उससे ३ योजन ऊपर जाकर शनि के विमान हैं । वे विमान ऊर्ध्वमुख अर्धगोलक के प्राकार हैं। ये सब देव इनमें सपरिवार बानन्द से रहते हैं । चन्द्र का चार क्षेत्र जम्बूद्वीप में १८० अपने मण्डल प्रमाण यो० विस्तार नीचे राहू विमान इन देवों में से चन्द्र को इंद्र और सूर्य को प्रतीन्द्र माना गया है। योजन और लवणसमुच में ३३०६ यो० है । इस चार क्षेत्र में चन्द्र की वाल १५ गलियाँ है । जम्बूद्वीप में दो चन्द्र हैं। विमानों से ४ प्रमाणगुल ( ८३ हाथ ) के ध्वजवण्ड है । ये अरिष्टरत्नमय विमान काले रंग के हैं। इनकीगति दिन राहु और पराहु के भेद से दो प्रकार है जिस मार्ग में चन्द्र परिपूर्ण दिखता है, वह दिन पूर्णिमा नाम से प्रसिद्ध है। राहु के द्वारा चन्द्रमण्डल की कलाओं को माच्छादित कर लेने पर जिस मार्ग में चन्द्र की एक कला ही अवशिष्ट रहती है, वह दिन भ्रमावस्या कहा जाता है । जम्बूद्वीप में सूर्य भी दो हैं। इनकी संचारभूमि ५१०६६ योजन है। इसमें सूर्यबिम्ब के समान विस्तृत और इस प्राधे बाल्य वाली १८४ वीथिंग हैं। सूर्य के प्रथमादि पथों में स्थित रहने पर दिन और रात्रि का प्रमाण दर्शाया गया है, इसके आगे कितनी धूप बोर कितना अंधेरा रहता है. यह विस्तार से बतलाया है। इसी प्रकार भरत एवं ऐरावत क्षेत्र में सूर्य के उदयकाल में कहाँ कितना दिन मोर रात्रि होती है, यह भी निर्दिष्ट किया गया है । अनन्तरग्रहों को संचारभूमि व बीधियों का निर्देश मात्र किया गया है। विशेष वर्णन न करने का कारण सद्विषयक उपदेश का नष्ट हो जाना बतलाया गया है। इसके बाद २८ नक्षत्रों की प्ररूपणा की गई है । फिर ज्योतिषी देवों की संख्या, आहार, उच्छ्वास और उत्सेध आदि कहकर इस महाधिकार की समाप्ति की गई है । (घ) प्रष्टम महाधिकार : सुरलोक इस महाधिकार में ७२६ गाथाएँ हैं। वैमानिक देवों का निवास क्षेत्र, विन्यास, भेष, नाम, सीमा, विमान संख्या, इंद्रविभूति, पायु, जन्म-मरण अन्तर, बहार, उच्छ्वास, उश्लेष, भायुषन्धकभाव, लौकान्तिक देवों का स्वरूप, गुणस्थानादिक, सम्यक्त्वग्रहण के कारण, आगमन अवधिज्ञान, देवों की संख्या, शक्ति घौर योनि शीर्षक इक्कीस अन्तराधिकारों के द्वारा वैमानिक देवों की विस्तार से प्ररूपणा की है । तिलोयपण्णत्तीकार के समक्ष बारह और सोलह कल्पों विषयक भी पर्याप्त मतभेद रहा है। ग्रन्थकर्ता ने दोनों मान्यतायों का उल्लेख किया है। गाथा ५५२ त्रिलोकसार ग्रन्थ ( ५२६ ) में ज्यों की त्यों मिलती है। अधिकार के आरम्भ में भगवान घनन्तनाथ को बीर अंत में भगवान धर्मनाथ को नमस्कार किया गया है। (ङ) नवम महाधिकार : सिद्धलोक इस महाधिकार में कुल पर गाथाएं हैं। सिद्धों का क्षेत्र, उनकी संख्या, अवगाहना, सौख्य और सिद्धस्य के हेतु भूत माव-नामके पाँच पसराधिकार है। इस अधिकार की बहुत सी गायायें समयसार, प्रवचनसार घोर
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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