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________________ [२६] पंचास्तिकाय में दृष्टिगोचर होती हैं। अधिकार के प्रारम्भ में शान्ति जिनेन्द्र को नमस्कार किया गया है और मंत में थी कुन्थुनाथ भगवान, अरनाथ, महिमनाथ, मुनिसुव्रतनाथ, ममिनाथ, नेमिनाथ, पाश्र्वनाथ बोर महावीर स्वामी को नमस्कार किया गया है। फिर एक गाथा में सिड, मूरिसमूह भोर साधुसंघ के जयवंत रहने की कामना की गई है । पुन: एक गाथा में भरत क्षेत्र के वर्तमान चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है। फिर पंचपरमेष्ठी को नमन किया है । अन्त में तिलोयपण्णसी ग्रन्थ का प्रमाण माठ हजार लोक बताया गया है। मनन्तर ग्रन्थकर्ता ने अपनी विनम्रता व्यक्त करते हुए कहा है कि "प्रवचनभक्ति से प्रेरित होकर मैंने मार्गप्रभावना के लिये इस श्रेष्ठ ग्रन्थ को कहा है। बहुत के धारक आवायें इसे शुद्ध कर लें।" प्रस्तुत खण्ड के करणसूत्र, प्रयुक्त संकेत, पाठान्तर, चित्र और तालिका मावि का विवरण इसप्रकार है-- करणसूत्र गाथा अधि०/गाथा संख्या गाथा अधिगाथा संस्था महवा आदिम मझिम ५२४५ लक्यूगइटरुदं ५२६३ महवा तिगुणिय मज्झिम ५१२४६ लक्खेतृणं र ०२४४ तिगुणियनास परिबी ५.३४३ वाविहीण वासे ७१४२४ बाहिर सूई वग्गो श६६ गच्छचएण गुणिद ८।१० लपखविहीणं रुदै ५।२६८ प्रस्तुत संस्करण में प्रयुक्त महत्त्वपूर्ण संकेत = श्रेणी t-प्रसंख्यात लोक का चिह्न पृ. १५० ई =दण्ड = प्रतर संड्यात बहुमाग पृ. १५० से =ोष त्रिलोक संख्यात एक भाग पृ० १५० हस्त = सम्पूर्ण जीवराशि मंगुल = सम्पूर्ण पुद्गल (की परमाणु) राशि प=पल्योपम ___ =अनुष १६ ख ख = सम्पूर्ण काल (की समय) राक्षि सा-सागरोपम ख खख = सम्पूर्ण आकाश (को प्रदेश) राशि सू सूच्यंगुल सेढी =श्रेणोक्ट - संख्यात प्रम्-प्रतरांगुल प्र =प्रकीर्णक = असंख्यात घमागुल मु मुहूर्त = असंख्यात ज. श्रे. जगणी छे -धंग्छेद = योजन लोय प-लोकप्रसर वि =दिन - योजन भू-भूमि मा माइ को-कोस
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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