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[ २७ ] पश्चिम रात्रि में दो-दो प्रहर तक अभिषेकपूर्वक जलवदनादिक प्राठ द्रव्यों से पूजन-स्तुति करते हैं। इस पूजन महोत्सव के निमित्त सौधर्मादि इन्द्र अपने-अपने वाहनों पर मारूद होकर हाथ में कुछ फल-पुष्पादि लेकर नहीं जाते हैं।
___ अनन्तर कुण्डलवर और रुचकवर इन दो तोपों का संक्षिप्त वर्णन करके कहा गया है कि जम्बूद्वीप से आगे संख्यात द्वीप समुद्रों के पश्चाद एक दूसरा भी जम्बूद्वीप है। इसमें ओ विषयादिक देवों की नगरिया स्थित हैं, उनका वहाँ विशेष वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् अन्तिम स्वयम्भूरमण द्वीप और उसके बीचों बीच वलयाकार से स्थित स्वयम्प्रभ पर्वत का निवेश कर यह प्रकट किया है कि लवणोद, कालोद और स्वयम्भूरमण ये तीन समुप कि कमभूमि सम्मस है, अतः इनमें तो जलपर जीव पाये जाते हैं किंतु अभ्य किसी समुद्र में नहीं ।
प्रनन्तर १९ पक्षों का उल्मेख करके उनमें द्वीप समुद्रों के विस्तार, खण्ड शलाकाओं, क्षेत्रफल सूचीप्रमाण और मायाम में जो उत्तरोतर वृद्धि हुई है उसका गणित प्रक्रिया के द्वारा बहुत विस्तृत विवेचन किया गया है। पश्चात् ३४ भेदों में विभक्त तियर जीवों की संख्या, भायु, मायुबन्धकभाव, उनकी उत्पत्तियोग्य योनियां, सुखदुःख, गुणस्थान, सम्यक्त्वग्रहण के कारण, गति-बागति आदि का कथन किया गया है। फिर उक्त ३४ प्रकार के लियंघों में अल्पबहुस्व और प्रववाहन विकल्पों का कथन कर पुष्पदन्त जिने को नमस्कार कर इस महाधिकार को समाप्त किया गया है। (स) षष्ठ महाधिकार : ध्यन्सर लोक
कुल १०३ गाथाओं के इस अधिकार में १७ अन्तराधिकारों के द्वारा व्यन्तर देवों का निवास क्षेत्र, उनके भेद, चित, कुलभेव, नाम, दक्षिण-उत्तर इंद्र, वायु, माहार, उच्छ्वास, मधिज्ञान, शक्ति, उत्सेध, संख्या, जन्ममरण, आयुबन्नकभाव, सम्यक्त्वग्रहण विधि और गुणस्थानादि विकल्पों की प्ररूपणा को मई है। इसमें कतिपय विशेष बातें ही चल्लिखित हुई है, शेष प्रपणा तृतीय महाधिकार में वर्णित भवनवासी देवों के समान कह दी गई है। प्रारम्भिक मंगलाचरण में शीतलनाथ जिनेन्द्र को भऔर अन्त में श्रेयांसजिनेन्द्र को नमस्कार किया गया है। (ग) सप्तम महाधिकार : ज्योतिर्लोक
इस महाधिकार में कुल ६२४ गाथाएँ हैं और १७ अन्तराधिकार है। ज्योतिषी देवों का निवास क्षेत्र, उनके भेद, संख्या, विन्यास, परिमाण, संचार-चर ज्योतिषियों को गति, अधर ज्योतिषियों का स्वरूप, आयु, माहार, उच्छ्वास, उसेघ, अवधिमान, पाक्ति, एक समय में जीवों को उत्पसि व मरण, भायुबन्धक भाव, सम्परपर्सनग्रहण के कारण और गुणस्थानादिक वर्णन अधिकारों के माध्यम से विस्तृत प्ररूपणा की गई है। प्रारम्भ में श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र को नमस्कार किया है और अन्त में विमननाथ भगवान को।
निवास क्षेत्र के अन्तर्गत बतलाया गया है कि एक राजू लम्बे चौड़े और ११० योबन मोटे क्षेत्र में ज्योतिषी देवों का निवास है। चित्रा पृथिवी से ७९० योजन ऊपर माकाश में सारागण, इनसे १० योजन ऊपर सूर्य, उससे ८० योजन ऊपर पन्द्र, उससे ४ योजन ऊपर नक्षत्र, उनसे ४ योजन ऊपर वृष, उससे ३ योजन पर शुक्र,