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गाथा : ३२० ]
पंचमी महाहियारो
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उक्करसोगाहणं पुणो तप्पा ओग्ग-प्रसंखेज्ज-पदेस-परिहीणं तबुवरि बढिदो ति । तादे बादरवणफदिकाइय- पत्तेयसरीर- निव्वति पज्जत्तयस्स जहष्णोगाहणं दीसइ ||
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे पाँच जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक बादर - निगोद-प्रतिष्ठित निवृत्ति पर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहनाको एक कम पत्थोपमके असंख्पातवें भागसे गुणा करके पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे रहित उसके ऊपर वृद्धि नहीं हो जाती । तब बादर-वनस्पतिकाधिक (७४) प्रत्येकशरीर निवृति-पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ॥
तदो पदेसुत्तर - कमेण छण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण-वियध्वं यच्चदि तप्पाश्रोग्गअसंखेज्ज -पदेसं बढदो त्ति । तावे बीइंबिय लद्धि अपज्जत्तयस्स उक्करसोगाहणा दोसs ||
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे छह जीवॉकी मध्यम श्रवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशों की वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब दो - इन्द्रिय (७५) लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
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तदो पदेसुत्तर- कमेण पंचण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण- वियप्पं बच्चवि तप्पा ओग्गप्रसंखेज्ज-पदेसं वड्ढिदो त्ति । तादे तीइंदिय-लद्धि - श्रवज्ञत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा दीसइ || अर्थ- पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे पांच जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशों की वृद्धि होने तक चलता रहता है। तब सोन-इन्द्रिय (७६) लब्ध्य- पर्याप्तककी उत्कृष्ट श्रवगाहना दिखती है ||
तो पवेसुतर कमेण चउन्हं मज्झिमोगाण वियप्पं वच्चदि तप्पाओग्गप्रसंखेज्ज-पदेसं वदिवो त्ति । तादे चरिदिय-लद्धि-प्रपज्जत्तयस्स उक्करसोगाहणा दीसह ||
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श्रयं - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे चार जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब चार इन्द्रिय (७७) लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट श्रवगाहना दिखती है ||
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तदो पवेसुत्तर - कमेण तिष्हं मज्झिमोगाह्ण वियष्पं वच्चदि तप्पा श्रोग्गअसंखेज्ज -पवेसं' यड्ढदो ति । तादे पाँचदिय लद्धि - अपज्जरायस्स उक्करसोगाहणा
१. द. ब. पदेस संवडिदो ।