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२०० ] तिलोयपणती
[ गाथा : ३२० दोसइ । तदो एवमवि घणंगुलस्स असंखेज्जाद'-भागो। एतो उवरि प्रोगाहणा घणंगुलस्स संखेज्ज - भागो कत्थ यि घणंगुलो, कत्य वि संखेज - घणंगुलो त्ति घेत्तन्वं ॥
अर्थ तत्पश्चान् प्रदेशोत्तर-क्रमसे तोन जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चालू रहता है । तब पंचेन्द्रिय(७८) लब्ध्यपर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । तब यह भी धनांगुलके असंख्यातवें भागसे है । इससे आगे अवगाहना धनांगुलके संख्यातवें भाग, कहीं पर धनांगुल प्रमाण और कहींपर संख्यात धनांगुल-प्रमाण ग्रहण करनी चाहिए ।
तदो पदेसुत्तर - कमेण दोण्हं मज्झिमोगाहण - क्यिप्पं बच्चदि तप्पाप्रोग्गअसंखेज्ज-पदेस बढिदो ति । तावे तीइंदिय • णिव्यत्ति - अपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दोसइ ।
अर्ष-तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे दो जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब तीनइन्द्रिय (७९) इन्द्रिय नित्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर-कमेण तिण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तप्पाप्रोग्ग-प्रसंखेउजपदेसं वढिदो ति । तादे चरिदिय-णिण्वसि-अपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दोसइ ।
अर्थ-पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे तीन जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता है। तब चार-इन्द्रिय(८०) नित्यपर्याप्तकको जघन्य अवगाहना दिखती है ॥
तदो पदेसुत्तर - कमेण चउण्हं मज्झिमोगाहण - वियप्पं बच्चदि तप्पाम्रोग्गअसंखेज्ज-पदेसं वढिदो ति। तावे बीई दिय-रिणवत्ति-अपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहरणा बीसइ ॥
अर्ष पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे चार जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता है। तब दो इन्द्रिय(८१) नित्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।
१. द ब. असंखेयदिभागेण ।