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तिलोयपण्णत्तो
[ गाथा : ३२० मर्थ-पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक एक क्रम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे मुणित तेजस्कायिक निर्वृत्ति-पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे हीन इसके ऊपर बृद्धिको प्राप्त नहीं हो जाती। तब बादर जलकामिक(५४) निति-पप्तिककी जघन्य अवगाहना निखती है ।।
तदो पवेसुत्तर-कमेण दसहं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तवणंतरोगाहणं ग्रावलियाए असं नदि-भागेगा पंडित साग-
दंतुनि वढिदो सि । ताद बादरप्राउकाइय-णिववत्ति-अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दीसइ ॥
अर्थ-पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे दस जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यात भागसे खण्डित करके उसमेंसे एक खण्ड प्रमाण इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं हो जाती । तब बादर जलकायिक(५५) नित्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तवो पदेसुत्तर - कमेण एवण्हं मज्झिमोगाहण - वियप्प बच्चदि तदरणंतरोगाहणा प्रावलियाए असंखेज्जवि भागेरण खंडिदेग-खंडं तदुरि डिदो ति। ताद बादर अाउकाइय - णिव्यत्ति - पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दोसइ । तदोवरि णस्थि एवस्त प्रोगाहण-वियप।
अर्थ--पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे नौ जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भाग प्रमाण इसके ऊपर नहीं बढ़ जाती । तब बादर जलकायिक(५६) निवृत्ति-पर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। इसके आगे उसको अवगाहनाके विकल्प नहीं हैं ।।।
तदो पदेसुत्तर - कमेण अट्टण्हं मज्झिमोगाहण - वियष्प वच्चदि तप्पागोग्गअसंखेज्ज-पदेसं वढिबो' ति । तावे बादर-पुढधिकाइय-णिव्यत्ति-अपज्जत्तयस्स जहणोगाहणा दोसइ॥
अर्थ-पप्रचात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे आठ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर-पृथिवीकायिक(५७) नित्यपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
१. द. ब. क. ज. वढिदि ।