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________________ भाग १] महाहियारो [ १९३ तदो पदेसुत्तर - कमेण बसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहरण थियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणं प्रावलियाए असंखेज्जदि भागेण खंडिय तबेगभागं तदुवरि वढिदो त्ति । तादे' बादर ते उकाइय- रिगव्यत्ति पज्जत्रायस्स उषकस्सोगाहणं दीसह । [ लघुरि तस्स श्रोगाहण· वियप्पं णत्थि, उक्कस्सोगाहणं पत्तत्तादो। ] - अर्थ - पश्चात् प्रदेशीत्तर क्रमसे दस जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक तदनन्तर श्रवगाहनाको श्रावलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करके उसमेंसे एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धि हो चुकती है । तब बादर- तेजस्कायिक (५१) निर्वृत्ति-पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । [ इसके श्रागे उसकी अवगाहना के विकल्प नहीं हैं, क्योंकि वह उत्कृष्ट अवगाहनाको प्राप्त कर चुका है । ] ती पदेसुतर कमेण णवण्हं मज्झिमोगाहण वियप्पं यच्चदि तप्पाओग्गअसंखेज्ज -पदेस - वड्ढिदो शि । तावे बादर आउकाइय-पिठयत्ति प्रपज्जत्तयस्स जहणोगाणं दीसइ || अर्थ -- तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है। इस समय बादर जलकायिक (५२) - निर्वृत्यपर्याप्तकको जघन्य अवगाहना दिखती है || तो पढेसुतर-कमेण दसहं जीवाणं मज्झिमोगाहरण- वियत्यं गच्छदि तप्पा - श्रोग्ग- श्रसंखेज्ज -पदेसं वडिवो त्ति । तादे बादर- श्राउ-लद्धि - अपज्जत्तयस्सर उक्कस्सोगाणा वीसइ ॥ अर्थ -- तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे दस जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है। तब बादर जलकायिक (५३) लम्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । तदो पदेसुत्तर- कमेण वहं मज्झिमोगाहण-वियप्पं गच्छवि रूऊण-पलिबोवमस्स असंखेज्जवि भागेण गुणिव तेजकाइय- णिव्यत्ति पज्जरायस्स उक्करसोगाहणं पुणो तप्पा ओश्य-श्रसंखेज्ज -पदेस-परिहीणं तदुवरि वदिवो ति । तावे बादर - श्राउकाइयपिव्यत्ति - पज्जत्तयस्स जहष्णोगाहणा दीसइ || १. द. व. क. ज. तवे । २. द. ब. पंज्जतयस्स ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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