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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ३२०
श्रर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे दस जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य बादर तेजस्कायिक (४७) -निवृत्यपर्याप्तककी
अशोकवृति है जघन्य अवगाहना दिखती है ||
तदो पत्तर- कमेण एक्का रसण्हं मज्झिमोगा हण-वियध्वं वच्चदि तप्पा ओग्गअसंखेज्जदि-पवेसं वड्ढिदो' ति । तादे बादर तेजकाइय-लद्धि अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा दीस ||
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श्रयं तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे ग्यारह जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य श्रसंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है। तब बादर- तेजस्कायिक (४८) - लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
तदो पढेसुत्तर- कमेण दसह मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि बाबर थाउकाइयव्वित्ति-पज्जत्तयस्स उक्करसोगाणं रूऊण-पलिदोवमस्स प्रसंवेज्जदि-भागेण गुणिय पुणो तप्पा ओग्ग- असंखेज्ज-पदेस-परिहीणं तदुवरि वढिदो त्ति । तादे बादर-तेजकाइयव्वित्ति पज्जसयस्स जहण्णोगाहणा दोसइ ॥
अर्थ-पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे दस जीवों की मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक वादर वायुकायिक- निवृत्ति पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाको एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणा करके पुनः इसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे रहित उसके ऊपर वृद्धि होती है । तब बादर-तेजस्कायिक (४९) निवृत्ति पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ||
तदो पदेसुत्तर - कमेरा एक्कारसहं जीवाणं मज्झिमोगाहण वियप्पं वच्चदि तदनंतरोगाहणा श्रावलियाए असंखेज्जदि-भागेण खंडिय तत्थेग - खंड लडुवरि बढिदो ति । तादे बादर-सेकाइय-निव्वत्ति-अपज्जत्तयस्स उक्करसोगाहणं दीसह
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे ग्यारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहनाको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करके उसमेंसे एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धि न हो जावे । तब बादर-तेजस्कायिक (५०) निर्वृ स्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
१. द. ब. वडिदि ।
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