SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा : ३२० ] पंचमो महाहियारो [ १९१ तदो पदेसुत्तर-कमेण एक्कारसहं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि । तं केतिघमेतण ? इदि उत्ते सुहुम-पुढविकाइय-णिवत्ति-पज्जत्तयस्स उपकस्सोगाहणा रूऊणपलिदोषमसंखेज्जदि-भागेण गुणिदं पुणो तप्पाओग्ग-प्रसंखेज्ज-पदेस-परिहोणं तदुरि वडिढदो ति । तादे बादर - वाउकाइय - णिव्वत्ति - पज्जत्तयस्स जहणिया प्रोगाहणा बोसइ ॥ अर्थ-पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे ग्यारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता रहता है। वह कितने मात्रसे ? इसप्रकार कहनेपर उत्तर देते हैं कि सूक्ष्म-पृथिवीकायिक निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाके एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणित पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे होन उसके ऊपर वृद्धि होने तक ! उस समय बादर वायुकापिक(४४) निवत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।।। तदो पदेसुत्तर-कमेण बारसण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तवणंतरोगाहरणं प्रावलियाए असंखेज्जदि-भागेण खंडियमेततं तदुवरि बढिदो त्ति । सादे बादर-बाउकाइयणिश्यत्ति-अपज्जत्तयस्स उकस्सोगाहपा दोसइ ॥ अर्थ--पश्चात् प्रदेशोत्तर-अमसे बारह जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक कि तदनन्तर अवगाहना प्रावलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित मात्र इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त होती है। तब बादर वायुकायिक(४५) नित्य पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।। तदो पदेसुत्चर-कमेण एक्कारसण्हं मशिमोगाहण - वियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणं आवलियाए असंखेज्जवि-भागेण खंडिदेग-खंडं तदुवरि वढिदो ति। तादे बाबरवाउकाइय-पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दीसइ । तदुवरि तस्स ओगाहण-वियप्पा पस्थि, सव्वुक्कस्सं पत्तत्तायो । अर्थ—पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे ग्यारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चालू रहता है, जब तक तदनन्तर अबगाहना प्राबलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त होती है । तब बादर वायुकायिक (४६) निति-पर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। तदो पदेसुत्तर-कमेण दसण्हं जीवारण मज्झिमोगाहरण-वियप्पं वाचदि तप्पाप्रोग-प्रसंखेज्ज-पदेस वडिदो ति। तादे बाबर - तेउकाइय - रिणव्यत्ति - अपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहरणा दीसइ ॥
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy