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तिलोयपगत्ती
[ गाथा : ३२० अर्थ-पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे तेरह-जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है, जब तक तदनन्तर अवगाहना प्रावलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो जाए। तब सूक्ष्म-पृथिवीकायिक(४०) निवृत्त्यपर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो' पदेसुत्सर-कमेण बारसण्ह जीवाणं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तदणंतरोगाहणा प्रावलियाए असंखेज्जदि-भागेण खडिय तत्थंग-भागं तदुरि वड्ढिवो प्ति । तदो सुहुभ-पुढदि-काइय-णिवत्ति-पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दोसइ । तदोवरि सुहुमपुढविकाइयस्स ओगाहण-वियप्पं णत्थि ।।
अर्थ–पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे बारह जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहनाको आवलोके असंख्यात भागसे खण्डित करके उसमेंसे एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धि होने तक चलता रहता है। तत्पश्चात् सूक्ष्म-पृथिवीकायिक(४१)-निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । इसके आगे सूक्ष्म-पृथिवोकायिककी अवगाहनाका विकल्प नहीं है ।
तबो पवेसुत्तर-कमेण एषकारसहं जीवाणं मज्झिमोगाहण - वियप्पं वच्चदि तप्पासोग्ग-असंखेज्ज-पदेसं वढियो ति । तादे बादर-याउकाइय-णिवत्ति-अपज्जत्तयस्स जहणोगाहणं दोसइ ॥
अर्थ-पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे ग्यारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात-प्रदेशों की वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर-वायुकायिक(४२) निवृत्त्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तर-कमेण बारसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बड्ढदि तप्पाश्रोग्ग-प्रसंखेज्ज-पदेसं वढिदो ति । सादे बावर-वाउकाइय-लद्धि-अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दोसई ॥
अर्थ-पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे बारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक बढ़ता रहता है । उस समय बादर वायुकायिक(४३) लब्ध्यपर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
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१.द.ब. तदा।