SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा : ३२० ] पंचमो महाहियारो [ १६५ तदो पदेसुत्तर - कमेण णवण्हं मज्झिमोगाहण - वियप्प वचदि तप्पाप्रोग्गअसंखेज्ज-पदेसं वढियो ति । तावे बादर-पुढविकाइय-लद्धि-अपज्जत्तयस्स उपकस्सोगाहणा दोसइ ।। प्रर्थ-पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे नी जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प इसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर पृथिवीकायिक(५८) लब्ध्यपर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।। तवो पदेसुत्तर - कमेण अढण्हं मज्झिमोगाहण - वियप वच्चदि। बादर आउकाइय-णिव्वत्ति-पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहरणं रूऊण-पलिदोवमस्स असंखेजदि भागेण गुणिदत्तं तप्पासोग्ग असंखेज्ज-पदेसं परिहीणं तदुवरि वडिढदो त्ति । तादे बावर पुढविकाइय-णिव्यत्ति-पज्जत्त यस्स जहणोगाहणं दोसइ ।। अर्थ-तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे आठ जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक बादर जलकायिक-नित्ति पर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहनाको एक कम पल्योपम के असंख्यातवें भागसे गुरिणतमात्र उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे रहित उसके ऊपर वृद्धि होती है। तब बादर पृथिवीकायिक(५९) निर्वृत्ति-पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।। तदो पवेसुत्तर-कमेण णवण्हं मज्झिमोगाहण - वियप्पं बच्चवि तवणंतरोगाहणं प्रावलियाए असंखेज्जदि-भागेण खंडिय तत्थेग-खंडं तदुरि वडि ढवो त्ति । तादे बादरपुढवि-णिव्यत्ति-अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहण दोसइ ॥ अर्थ-पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है, जब तक तदनन्तर अवगाहना प्रावलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित कर एक भाग प्रमाण उसक ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो चुके । तब बादर-पृथिवीकायिक(६०)-निवृत्ति-अपर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।। तदो पवेसूत्तर-कमेण अट्टण्हं मझिमोगाहरण-वियप यच्चदि तवणंतरोगाहणा आवलियाए असंखेज्जदि-मागेण-खंडिदेग-खंड तबुधरि वडिलदो ति । तादे बादर-पुधि काइय-णिव्यत्ति-पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं बीसइ॥ प्रथ-तब प्रदेशोत्तर-क्रमसे आठ जोवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना पावलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करके उसमें से एक खण्ड प्रमाण
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy