________________
१८६ ]
तिलोय पण्णत्ती
[ गाथा : ३२०
प्रर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर - क्रमसे चौदह जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशों की वृद्धि होने तक चलता रहता है । इस समय सूक्ष्म जलकायिक (३३) लब्ध्यपर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ||
I
तो पदेसुत्तर - कमेण तेरसहं जीवाणं मज्झिमोगाहण-वियप्पं वच्चदि । के तियमेण ? सुहूम-तेजकाइय-वित्ति-पज्जत्वकस्सोगाणं रूऊणावलियाए प्रसंखेज्जदिभागेण गुणिदमेतं पुणो तप्पा श्रोग्ग श्रसंखेज्ज -पदेस-परिहोणं तदुवरि वढिदो ति । तादे सुहुम-प्राजकाइय णिच्वति पज्जत्तयस्स जणोगाहणा दीसह ||
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसं तेरह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता रहता है । कितने मात्रसे ? सूक्ष्मतेजस्कायिक निर्वृत्ति पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना के एक कम श्रावलीके ग्रसंख्यातर्व-भाग से गुणितमात्र पुनः उसके योग्य असंख्यात - प्रदशोंसे रहित इसके ऊपर वृद्धि होने तक 1 तब सूक्ष्मजलकायिक ( ३४) निर्वृत्ति पर्याप्तकको जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तो पदेसुतर-कमेण चोद्दसहं जीवाणं मज्झिमोगाहण - वियप्पं यच्चदि तवांत रोगाणा' प्रावलियाए असंखेज्जदि भागेण खंडिदेग-खंडमेत्तं तदुवरि वड्ढिदो ति । तादे सुहुम- श्राउका इय णिव्वति अप्पज्जत्तयस्स उबकस्सोगाणा दीसइ ॥
श्रथं - तत्पश्चात् प्रदेशोनर क्रमसे चौदह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक कि तदनन्तर अवगाहना झावली के असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भागमात्र इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो चुके । तब सूक्ष्म जलकायिक (३५) - निवृत्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ||
तव पदेसुतर-कमेण तेरसहं मज्झिमोगाहण-वियष्पं वच्चवि तदनंतरोगाहणा श्रावलियाए असंखेज्जदि-भागेण खंडिदेग-खंडमेत तदुवरि बढिदो ति । तादे सुमउकाइय- निव्वति पज्जतयस्स उक्कस्सोगाहरणा होबि । एत्तियमेत्ता याउकाइय-जीवाणं गाह - विप्पा | कुदी ? सन्वोक्करसोगाहणं पत्रात्तादो ॥
अर्थ-तत्पश्चात् प्रदशोत्तर क्रमसे तेरह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवली के श्रसंख्यातवें भागसे खण्डित एक भागमात्र उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो चुके । उस समय सूक्ष्मजलकामिक ( ३६ ) - निर्वृत्ति-पर्याप्तकको उत्कृष्ट
१. द. व. तदंतरोगातॄणा । २. द ब वियपं । ३. द. ब. क. ज. पत्तं तादो !
: