________________
पंचमो महाहियारो
[ १८३
गाथा : ३२० }
तदो पदेसुत्तर - कमेशा चोद्दसहं जीवाण मज्झिमोगाहण वियप्पं बढदि तदनंतरोगाहणं रूऊण-पलिबोवमस्स असंखेज्जदिभागेण गुणिदमेत्तं तदुवरि वढिदो चि । तावे चरिदियलद्धि- प्रपज्जतयस्त सव्व जहणोगाहणा दोसइ ||
-
अर्थ - इसके पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे उक्त चौदह जीवोंकी मध्यम अवगाह्नाका विकल्प बढ़ता जाता है जब तदनन्तर अवगाहना एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र ( उस ) के ऊपर वृद्धिको प्राप्त हो चुकती है, तब चार- इन्द्रिय (१५) लब्ध्यपर्याप्तककी सर्व जघन्य श्रवगाहना दिखती है ||
तो पदेसुत्तर - कमेण पणारसहं जीवाण मज्झिमोगाहण वियत्वं वढदि सदणंतरोगाणां रूऊण-पलिदोषमस्स श्रसंखेज्ज विभागेण गुणिदमेत तदुवरि वडिवो ति । तादे' पंचेंदिय-लद्धि- प्रपज्जत्तयस्त जहणोगाहणा दीसइ ॥
श्रर्थ - इसके पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे उक्त पन्द्रह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढ़ता जाता है जब तदनन्तर अवगाहना एक कम पत्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र ( इस ) के ऊपर वृद्धिको प्राप्त कर लेती है, तब पंचेन्द्रिय (१६) - लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य प्रवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तर- कमेण सोलसण्हं [ जीवाण ] मज्झिमोगाहण- वियत्वं वड्ढदिव तप्पाश्रोग्म-प्रसंखेज्ज-पदेस वहिदो ति । तवो सहुम-रिगगोद णिव्यत्ति प्रपज्जत्तयस्स सव्व जहण्णा ओगाहणा दीसह ||
अर्थ- तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रम से उक्त सोलह [ जीवोंकी ] मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढ़ता जाता है, जब तक इसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि प्राप्त होती है । पश्चात् सूक्ष्मनिगोद ( १७ ) निर्वृत्यपर्याप्तककी सर्व जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर - कमेण सत्तारसहं जीवाणं मज्झिमोगाहण-वियप्पं होदि जाय तप्पा ओग्ग- श्रसंखेज्ज -पदेसं बढिदो त्ति । तावे सुहुम- णिगोद-लद्धि- अपज्जत्तयस्स उक्करोगाणा बीसइ ||
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे उक्त सत्तरह जीवोंकी मध्यम श्रवगाह्नाका विकल्प होता है जब इसके योग्य प्रसंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि हो जाती है । तब सूक्ष्मतिगोद (१८) - लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
१. द. तदे ।