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________________ १८२] तिलोयपपत्ती [ गाथा : ३२० अर्थ—पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे उक्त दस जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढ़ता जाता है, जब इस अवगाहनाके ऊपर यह अवगाहना एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागस गुरिणतमात्र वृद्धिको प्राप्त हो चुकती है, तब निगोदप्रतिष्ठित(११) लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है । तदो पदेसुत्तर-कमेण एक्कारस-जीवाण मज्झिमोगाहण-वियप वढदि जाव इमा प्रोगाहणा-मुवरि रूऊण-पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागेण गुणिद-तदणंतरोगाहरणमेतं वडिढदो' ति । ताहे बादर-वणप्फविकाय-पत्तेय-सरोर-लनि-अपज्जसयस्स जहण्णोगाहणा दोसइ॥ अर्थ-तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे उक्त ग्यारह जोवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढता जाता है, जब इस अवगाहनाके ऊपर एक कम पस्योपमके असंख्यातवें भागसे गुरिणत तदनन्तर अवगाहना प्रमाण वृद्धि हो चुकती है, तब बादर वनस्पतिकायिक(१२)-प्रत्येक शरीर लब्ध्यपर्याप्तकको जघन्य अवगाहना दिखती है ॥ तको पदेसुत्तर-कमेण बारसण्हं जीवाण मज्झिमोगाहग-वियप्पं बड्ढदि तवणंतरोवगाहणा रूऊण-पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागेण गुणिवमेतं तदुरि बढिदो ति । तादे बोइंदिय-लद्धि-अपज्जत्तयस्स सव-जहण्णोगाहणा बीसइ॥ अर्थ-तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे उक्त बारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढ़ता जाता है जब तदनन्तर अवगाहना एक कम पल्पोपमके असंख्यातवें भागसे गणितमात्र (उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त हो चुकती है, तब दो इन्द्रिय(१३) लब्ध्यपर्याप्तककी सर्व जघन्य अवगाहना दिखती है ।। तवो पहुवि पदेसुत्तर-कमेण तेरसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बडढदि जाव तदणंतरोगाहण-ऊरण-पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागेरण गुणिवमेत्तं तदुवरि वडिलदो त्ति । तदो तोइविय-लद्धि-अपज्जप्तयस्स सव्व जहष्णोगाहणा दीसइ ॥ अपं- तत्पश्चात् यहाँसे आगे प्रदेशोत्तर-क्रमसे उक्त तेरह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढ़ता जाता है जब तदनन्तर अवगाहना-विकल्प एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुरिणतमात्र ( उस )के ऊपर वृद्धिको प्राप्त हो चुकती है, तब तीन इन्द्रिय(१४) लब्ध्यपर्याप्तककी सर्व जघन्य अवगाहना दिखती है। --- १. द. ब. बहिदि । २. द. ज.तधे।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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