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१७८ ] तिलोयपणाती
पा : ३१९-३२० एकेन्द्रियसे पंचेन्द्रिय पर्यन्त उत्कृष्ट अवगाहनाका प्रमाणजोयण-सहस्समहिनं, बारस कोसूणमेक्कमेक्कं च । दोह-सहस्सं पम्मे, वियले सम्मुच्छिमे महामच्छे ॥३१९॥
१००० । १२ ।। १ । १००० । अर्थ-कुछ अधिक एक हजार (१०००) योजन, बारह योजन, एक कोस कम एक योजन, एक योजन और एक हजार ( १००० ) योजन यह क्रमशः पद्म, विकलेन्द्रिय जीव और सम्मूच्छंन महामत्स्यको अवगाहनाका प्रमाण है ।1३१९।।
पर्याप्त वस जीवों में जघन्य अवगाहनाके स्वामीबि-ति-चउ-पुण्ण-जहण्णे, अणुधरी - कुथु-काण-मच्छोसु । सित्थय - मच्छोगाहं, विदंगुल-संख-संख-गुणिव-कमा ।।३२०॥
७७७७ | ७७७७७७
अर्थ-दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चार इन्द्रिय पर्याप्त जीवोंमें क्रमशः अनुन्धरी, कुन्थु और कानमक्षिका तथा पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंमें सिक्थक-मत्स्यके जघन्य अवगाहना होती है। इनमें से अनुन्धरीकी अवगाहना घांगुलके सख्यातवेंभागप्रमाण और शेष तीनकी उत्तरोत्तर क्रमशः संख्यातगुणी है ।।३२०॥
___विशेषार्य-पर्याप्त दो इन्द्रिय अनुन्धरीकी जघन्य अवगाहना चार बार संख्यातसे भाजिस घनांगुल प्रमारण अर्थात् + है । पर्याप्त तीन इन्द्रिय कुन्थुकी जघन्य अवगाहना तीन बार सख्यातसे भाजित घनांगूल (0) प्रमाण है । पर्याप्त चार इन्द्रिय कानमक्षिकाकी जघन्य अवगाहना दो बार संख्यातसे भाजित धनांगुल (0) प्रमाण है और पर्याप्त पंचेन्द्रिय तन्दुल मत्स्यकी जघन्य अवगाहना एक बार संख्यातसे भाजित घनांगुल (3) प्रमाण है । नोट-सहोष्टमें ६ का अंक धनांगुलके ओर ७ का अंक संख्यातके स्थानीय है।
___ अवभाहनाके विकल्पोंका क्रमएस्थ ओगाहण-वियप्पं वत्त इस्सामो । तं जहा-सुहम-णिगोद-लद्धि-अपज्जत्तयस्य तबिय-समयत्तब्भवस्थस्स एगमुस्सेह - धणंगुलं ठविय तप्पासोग्ग - पलिबोवमस्स असंखेज्जविभागेण भागे हिबे वलद्धं एविस्से सव-जहण्णोगाहणा-पमाणं होदि ।