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गाया : ३१७-३१८ ]
पंचमो महाहियारो (२५) इनसे विशेष अधिक जलकाधिक सूक्ष्म अपर्याप्त हैं । (२६) इनसे विशेष अधिक वायुकायिक सूक्ष्म अपर्याप्त है। (२७) इनसे संख्यातगुणे तेजस्कायिक सूक्ष्म पर्याप्त हैं। (२८) इनसे विशेष अधिक पृथिवीकायिक सूक्ष्म पर्याप्त हैं । (२९) इनसे विशेष अधिक जलकायिक सूक्ष्म अपर्याप्त हैं । (३०) इनसे विशेष अधिक वायुकायिक सूक्ष्म पर्याप्त हैं । (३१) इनसे अनन्तगुण साधारण बादर पर्याप्त हैं । (३२) इनसे असख्यात गुण साधारण बादर अपर्याप्त हैं। (३३) इनसे असंख्यातगुणे साधारण सूक्ष्म अपर्याप्त हैं । और (३४) इनसे संच्यातगुणे साधारण सूक्ष्म पर्याप्त है।
इसप्रकार अल्पबहुत्वका कथन समाप्त हुना ॥१५॥
सर्व जघन्य अवगाहनाका स्वामी
प्रोगाहणं त अवरं, सुहम-णिगोवस्सपुग्ण-लहिस्स । अंगुल - असंखभागं, जावस्स य तदिय-समयम्मि ||३१७।।
अर्थ-सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तकके उत्पन्न होनेके तीसरे समयमें अंगुलके असल्यातवें भाग प्रमाण जघन्य अवगाहना पायी जाती है ।।३१७।।
सर्वोत्कृष्ट अवगाहनाका प्रमाणतत्तो पदेस-वढी, जाव य दोहं तु जोयण-सहस्सं ।
तस्स वलं विक्खंभं, तस्सद्ध बहलमुक्कस्सं ॥३१॥
अर्य- तत्पश्चात् एक हजार योजन लम्बे, इससे आधे अर्थात् पांच सौ योजन चौड़े और इससे प्राधे अर्थात् ढाईसौ योजन मोटे शरीरकी उत्कृष्ट अवगाहना पर्यन्त प्रदेश-वृद्धि होती गई है ।।३१८॥