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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ३१६
अर्थ - अब यहाँ से आगे चौतीस प्रकारके तिर्यत्रों में अल्पबहुत्व कहते हैं । वह इसप्रकार
(१) बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीव सबसे थोड़े हैं ।
(२) इनसे प्रसंख्यातगुणे पंचेन्द्रिय तिर्यंच संज्ञी अपर्याप्त हैं ।
(३) इनसे संख्यातगुणे संज्ञी पर्याप्त हैं।
(४) इनसे संख्यातगुणे चार इन्द्रिय पर्याप्त हैं ।
(५) इनसे विशेष अधिक पन्वेन्द्रिय तिर्यंच प्रसंज्ञी पर्याप्त हैं ।
( ६ ) इनसे विशेष अधिक दो इन्द्रिय पर्याप्त हैं ।
( 9 ) इनसे विशेष अधिक तीन इन्द्रिय पर्याप्त हैं ।
(5) इनसे असंख्यात गुणे असंज्ञी अपर्याप्त हैं । (९) इनमें विशेष अधिक चार इन्द्रिय अपर्याप्त हैं । (१०) इनसे विशेष अधिक तीन इन्द्रिय अपर्याप्त हैं । ( ११ ) इनसे विशेष अधिक दो इन्द्रिय अपर्याप्त हैं । (१२) इससे असंख्यातगुणे अप्रतिष्ठित पर्याप्त प्रत्येक हैं । (१३) इनसे असंख्यातगुणे प्रतिष्ठित पर्याप्त प्रत्येक जीव हैं । (१४) इनसे असंख्यातगुणे पृथिवीकायिक बादर पर्याप्त जीव हैं । (१५) इनसे असंख्यातगुणे बादर जलकायिक पर्याप्त जीव हैं। (१६) इनसे असंख्यातगुणे बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव हैं । (१७) इनसे असंख्यातगुणे अप्रतिष्ठित अपर्याप्त हैं । (१०) इनसे असंख्यातगुणे प्रतिष्ठित पर्याप्त हैं। (१९) इनसे असंख्यातगुणे तेजस्काधिक बादर अपर्याप्त हैं । (२०) इनसे विशेष अधिक पृथिवीकायिक बादर पर्याप्त जीव हैं । (२१) इनसे विशेष अधिक जलकायिक बादर अपर्याप्त जीव है । (२२) इनसे विशेष अधिक वायुकायिक बादर अपर्याप्त जीव हैं । ( २३ ) इनसे प्रसंख्यातगुणे तेजस्कायिक सूक्ष्म अपर्याप्त हैं । (२४) इनसे विशेष अधिक पृथिवोकायिक सूक्ष्म अपर्याप्त हैं ।
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