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________________ गाथा : ३२० ] पंचमो महाहियारो [ १७९ अर्थ-अब यहाँ अवगाहनाके विकल्प कहते हैं। वे इसप्रकार हैं-उत्पन्न होनेके तीसरे समयमें उस भव में स्थित सूक्ष्मनिगोदिया(१)-लब्ध्यपर्याप्त जीवकी सर्व जघन्य अवगाहनाका प्रमाण, एक उत्सेध-घनांगुल रखकर उसके योग्य पस्योपमके अस ख्यातवें भागसे भाजित करनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना है ।। एदस्स उरि एग-पदेसं वढिदे सुहम-णिगोद-लद्धि-अपज्जत्तयस्स भग्झिमोगाहण-वियप्पं होवि । तदो दु-पदेसुत्तर-ति-पदेसुत्तर-चदु-पदेसुत्तर-जाव सुहम-रिंगगोदलद्धि-अपज्जत्तयस्स सव्व - जहपगोगाहणा - णुवरि जहण्णोगाहणा रूकणावलियाए असंखेज्जवि-भागेण गुणिदमेत्तं वढिदा ति। तादे सुहम-वाउकाइय-लद्धि- अपज्जतयस्स सन्य-जहण्णोगाणा दोसइ ।। अर्थ-इसके ऊपर एक प्रदेशकी वृद्धि होनेपर सूक्ष्म-निगोदिया-लब्ध्यपर्याप्तको मध्यम अवगाहनाका विकल्प होता है । इसके पश्चात् दो प्रदेशोतर, तीन प्रदेशोतर एवं चार प्रदेशोत्तर क्रमशः सूक्ष्मनिगोदिया-लब्ध्यपर्याप्तको सर्व-जघन्य अवगाहनाके ऊपर, यह जघन्य अवगाहना एक कम पावलोके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर जो प्रमाण प्राप्त हो, उतनी बढ़ जाती है। उस समय सूक्ष्म वायुकायिक(२) लब्ध्यपर्याप्तककी सर्व जघन्य अवगाहना दिखती है ।। ..' एवमवि सुहमणिगोद-लद्धि-अपज्जत्तयस्स मज्झिमोगाहियाण वियप्पं होदि । तदो इमा प्रोगाहणा पदेसत्तर-कमेण वड्ढावेदव्या । तवणंतरोगाहणा रूवणालियाए असंखेजदिभागेण गुणिदमेत्तं वढियो ति। तावे सुहुमतेउकाइय-लद्धि-अपज्जत्तस्ससव्व-जहणोगाहणा दोसइ ।। अर्थ---यह भी सूक्ष्म-निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तककी मध्यम अवगाहनाका विकल्प है। तत्पश्चात इस अवगाहनाके ऊपर प्रदेशोत्तर क्रमसे वृद्धि करना चाहिए। इसप्रकार वृद्धिके होनेपर वह अनन्तर अवगाहना एक कम आवलीके असंख्यातवें भागसे गुरिणतमात्र वृद्धिको प्राप्त हो जाती है । तब सूक्ष्म तेजस्कायिक(३) लब्ध्यपर्याप्तकका सर्वजघन्य अवगाहना स्थान प्राप्त होता है ।। ___ एवमधि पुघिल्ल-दोणं जीवाणं मज्झिमोगाहण-वियप्पं होदि । पुणो एदस्सपरिम-पदेसत्तर-कमेण इमा प्रोगाहणा रूऊणावलियाए असंखेज्जदि-भागेण गिदमे बढिदो ति । तादे सहम - प्राउक्काइय • लद्धि-अपज्जत्तयस्स सव्व-जहण्योगाहणा दोसई॥ १. ६. ब. क. ज. वरतीदो त्ति । २. द.ब. पज्जत्तयस्स । ३. द. ब. लदपज्जत्तयस्स।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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