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तिलोयपण्यत्ती
[ गाथा : २९०-२९४ समय-जुद -पुण्य- मोती, पदहराम हेगग-जहण्णयं आऊ ।
उक्कस्समेक्क - पल्लं, मज्झिम • भेयं अणेयविहं ।।२६०॥ अर्थ-जघन्य भोगभूमिजोंको जघन्य आयु एक समय अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट प्रायु एक पल्य-प्रमाण है । मध्यम प्रायुके अनेक प्रकार हैं ।।२९०।।
समय-जुद-पल्लमेक्क, जहग्णय मज्झिमम्मि अवराऊ ।
उक्कस्सं दो - पल्लं, मज्झिम - भेयं अणेय - विहं ॥२६॥
अर्थ-मध्यम भोगभूमिमें जघन्य आयु एक समय अधिक एक पल्य और उत्कृष्ट प्रायु दो पल्य प्रमाण है । मध्यम आयुके अनेक प्रकार हैं ।।२९१।।।।
समय-जुद-दोणि-पल्लं, जहण्णयं तिण्णि-पल्लमुक्कस्सं । उक्कसिय • भोयभुए, मज्झिम - भेयं अणेय - विहं ॥२६२।।
आऊ समत्ता ॥८॥ अर्थ उत्कृष्ट भोगभूमिमें जघन्य आयु एक समय अधिक दोपल्य और उत्कृष्ट तीन पल्यप्रमाण है । मध्यम अायुके अनेक भेद हैं ।।२९२।।
आयुका वर्णन समाप्त हुआ 11८॥
तिर्यञ्च आयुके बन्धक भाव-- प्राउग-बंधण-काले', भू - भेदट्ठी - उरभयस्सिगा। चक्क-मलो व्य कसाया, छल्लेस्सा - मज्झिमंसेहि ।।२६३।। जे जुत्ता णर-तिरिया, सग-सग-जोहि लेस्स-संजुत्ता । णारइ - वेषा केई, णिय-जोग-तिरिक्खमाउ बंधति ॥२६४॥
आउग-बंधण-भावं समत्त ॥६॥ अर्थ-आयुके बन्धकालमें भरेखा, हड्डी, मेढ़ेके सींग और पहियेके मल ( ओंगन ) सदृश क्रोधादि कषायोंसे संयक्त जो मनुष्य और तिर्यंच जीव अपने-अपने योग्य छह लेण्यायोंके मध्यम अंशों सहित होते हैं तथा अपने-अपने योग्य लेश्याओं सहित कोई-कोई नारकी एवं देव भी अपने-अपने योग्य तिर्यच आयुका बन्ध करते हैं ।।२९३-२९४।।।
___ आय-बन्धक भावोंका कथन समाप्त हुआ ॥९॥ - -. . .. . १६. ब क, ज. कालो । २. उग्गुरुभयस्सिगा।
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