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गाथा : २८६-२८९ ] पंचमो महाहियारो
[ १६७ प्रयं-पक्षियोंकी उत्कृष्ट आयु बहत्तर हजार ( ७२००० ) वर्ष और सर्पोको बयालीस हजार (४२००० ) वर्ष प्रमाण होती है। शेष तिर्यंचोंकी उत्कृष्ट आयु एक पूर्वकोटि प्रमाण है।॥२८॥
तिर्यञ्चोंके यह उत्कृष्ट आयु कहाँ-कहाँ और कब प्राप्त होती हैएदे उक्कसाऊ, पुष्यावर-बिवेह-जाद'-तिरियाणं । सरसावधि-सिक्य, बाहरमागे संबंपह-गिरीको ।।२०६॥ तत्थेव सव्वकालं, केई जीवाण भरह - एरवदे ।
तुरिमस्स पढमभागे, एवार होदि उक्कस्सं ॥२७॥
प्रर्थ-उपर्युक्त उत्कृष्ट आयु पूर्वापर विदेह क्षेत्रों में उत्पन्न हुए तिर्यञ्चोंके तथा स्वयम्प्रभ पर्वतके बाह्य कर्मभूमि-भागमें उत्पन्न हुए तिर्यञ्चोंके ही सर्वकाल पायी जाती है । भरत और ऐरावत क्षेत्रके भीतर चतुर्थकालके प्रथम भागमें भी किन्हीं तिर्यचोंके उक्त उत्कृष्ट प्रायु पायी जाती है ।। २८६-२८७ ।।
कर्मभूमिज तिर्यचोंको जघन्य आयु– उस्सासस्स - द्वारस - भागं एइदिए जहण्णाऊ ।
वियल - सलिबियाणं, तत्तो संखेज्ज - संगुणिदे ॥२८८।।
मर्थ - एकेन्द्रिय जीवोंकी जघन्य प्रायु उच्छ्वासके अठारहवें भाग प्रमाण और विकलेन्द्रिय एवं सकलेन्द्रिय जीवोंकी क्रमशः इससे उत्तरोत्तर संख्यात-गुणी है ॥२८८।।
भोगभूमिज तिर्यंचोंकी प्रायुवर-मज्झिमवर-भोगज-तिरियारणं तिय दुगेक्क-पल्लाऊ । प्रवरे वरमिम तत्तिय - मविणस्सर - भोगभूवाणं ॥२८६।।
प३ । १२ । प १ । प्रर्व-उत्कुष्ट, मध्यम और जघन्य भोगभूमिज तिर्यंचोंकी आयु क्रमश: तीन पल्प, दो पल्य और एक पल्य प्रमाण है । अविनश्वर भोगभूमियोंमें जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु उक्त तीन प्रकार ही है ॥ २८९ ॥
--. -.. - १. ब. जदि। २... क. अ. गिरियो ।