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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : २८३-२८५ विशेषार्य-तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय पर्याप्त राशिका प्रमाण देवराशि ( ३ । ६५= । ७ } के संख्यातवें भाग प्रमाण अथान् । ६५ । ७ । ७ होता है । अथवा ३ । ६५५३६ । ७ १७ । होती है । यहाँ-जगत्प्रतर, ४ प्रतरांगुल, ६५=पण्णट्ठी अर्थात् ६५५३६ तथा ७ संख्यातका प्रतीक है । इसलिए इस राशि को तत्प्रायोग्य संख्यात (५) से खण्डित करनेपर बहुभाग मात्र संजी और पर्याप्त तियं च प चेन्द्रिय जीवराशि ६ ६५५३६ ५ ७ । ७३ प्रमाण होती है । तथा शेष एक भाग संज्ञो पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त जीव राशि ३ । ६५५३६ । ७ । ७११ प्रमाण होती है ।
इसप्रकार संख्या-प्ररूपणा समाप्त हुई ।।७।।
स्थावर जीवोंकी उत्कृष्टायुसुद्ध-खर-भू-जलाणं, बारस बाबीस सत्त य सहस्सा ।
तेउ-तिय विवस-तियं, बरिसं ति-सहस्स दस य जेट्ठाऊ ॥२३॥ १२००० । २२००० । ७००० । दि ३ । व ३००० । व १०००० ।
अर्थ-शुद्ध पृथिवोकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट प्रायु बारह हजार { १२००० ) वर्ष, स्वर पृथिवीकायिक की बाईस हजार ( २२०००) वर्ष, जलकायिक की सात हजार ( ७०००) वर्ष, तेजस्कायिक की तीन दिन, वायुकायिककी तीन हजार ( ३०००) वर्ष और वनस्पतिकायिक जीवोंकी दस हजार ( १०००० ) वर्ष प्रमाण है ॥२८३।।
विकलेन्द्रियों और सरीसृपोंकी उत्कृष्टायुवास-दिण-मास-बारसमुगुवगणं छक्क वियल-जेट्ठाऊ । णय • पुच्वंग - पमाणं, उक्कस्साऊ सरिसबाग' ॥२८४।।
व १२ । दि ४९ । मा ६ । पुवंग है। अर्थ-बिकलेन्द्रियोंमें दोइन्द्रियोंकी उत्कृष्टायु बारह (१२) वर्ष, तीन इन्द्रियोंकी उनचास दिन और चारइन्द्रियोंकी छह (६) मास प्रमाण है। (पंचेन्द्रियोंमें ) सरीसृपोंकी उत्कृष्टायु नौ पूर्वाङ्गप्रमाण होती है ।।२८४।।
पक्षियों, सर्पो और शेष तिर्यंचोंकी उत्कृष्टायु-- बाहत्तरि बादालं, वास-सहस्साणि पक्खि-उरगाणं । अवसेसा - तिरियाणं, उक्कस्सं पुरुब - कोडीओ ॥२८॥
७२००० । ४२००० । पुषकोडि १।
१. व. ब. सरिपाणं।