SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ म । . - गाथा : २८२ ] पंचमो महाहियारो [ १६५ तिर्वञ्च असंज्ञी पर्याप्त जीवोंका प्रमाणपुणो पंचेन्द्रिय - पज्जत्तापञ्जत्त - रासीणं मझे देव-धोरइय-मणुस-देवरासिसंखेज्जविभागभूद-तिरिक्ख-सण्णि-रासिमवणिवे अवसेसा तिरिक्ख - असण्णि - पज्जत्तापज्जत्ता होति । तं चेदं पज्जत्त । - रिण रासि = ४।६५५३६ ५६६ ११३ मू० ४ । ६५५३६।७। ७ । ५' अर्थ-पुन: पंचेंन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त राशियोंके मध्यमेंमे देव, नारकी, मनुष्य तथा देवराशिके संख्यातवें भाग प्रमाण तिर्यञ्च संजी जीवोंकी राशिको घटा देनेपर शेष तिर्थञ्च असंशी पर्याप्त जीवोंका प्रमाण होता है । विशेषार्थ-सम्पुर्ण पंचेन्द्रिय पर्याप्त राशिका प्रमाण ५५४ है। और देव राशिका प्रमाण । ६५५३६ । नरक राशिका - २ मू । पर्याप्त मनुष्य राशि का ---- तथा तिर्यंच संज्ञी राशिका प्रमाण ३ । ६५५३६ । ७ । ७ । । है। उपर्युक्त पंचेन्द्रिय पर्याप्त राशिमेंसे देव, नारकी, पर्याप्त मनुष्य और संज्ञी तियंच, इन चारों राशियों को घटा देनेपर जो शेष बचता है वही असंज्ञी पर्याप्त जीवोंका प्रमाण होता है । जो स्थापना मूलमें की गई है उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है – =जगत्प्रतर और ४ प्रतरांगुलका प्रतीक है। -२ मू का अर्थ है, जगच्छरणीका दूसरा वर्गमूल। - 4_ का अर्थ है, सूच्यांगुलके प्रथम एवं तृतीय मूल का परस्पर गुरसा करने १।३ । मू पर जो लब्ध प्राप्त हो उससे जगच्छ्रेणीको भाजित कर १ घटा देना चाहिए । पश्चात् जो अवशेष रहे वह पर्याप्त मनुष्यकी संख्याका प्रमाण होता है। तिर्यञ्च संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त जीवराशिका प्रमाण पुणो पुव्वं अवणिद-तिरिक्ख-सण्णि-रासीणं तप्पाओग्ग-संखेज्ज-हवेहि खंडिने तस्थ बहभागा तिरिक्ख-सपिण-पंचेदिय-पज्जत्त-रासो होधि, सेसेगभाग सण्णि-पंचेदियअपज्जत्त-रासि-पमाणं होदि । तं चेदं । ६५ = । ७ । ७ । । । । ६५= | 01७६। एवं संखा-परूवणा समता ॥७॥ अर्थ—पुनः पूर्व में अपनीत तियंञ्च संज्ञी राशिको अपने योग्य संख्यात रूपोंसे खण्डित करने पर उसमें से बहभाग तिर्यञ्च संज्ञी पधेन्द्रिय पर्याप्त जीवराशि होती है और शेष एक भाग (तिर्यञ्च) संज्ञी पधेन्द्रिय अपर्याप्त जीवराशिका प्रमाण होता है ।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy