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________________ १४८ ] तिलोयपत्ती [ गाथा : २८२ या : रि.१० १० - अलका बादर अपर्याप्त राशि । संख्यात वायुका० बादर अप० राशिवायुका० बादर राशि - वायुकर० पर्याप्त राशि । या = रि-१० १० १० १- वायुका० बादर अपर्याप्त राशि ! . पुणो पुढविकायावोरणं सुहुम-रासि-पत्तेयं तप्पाओग्ग संखेज-वेहि खंडिदे बहुभाग सुटुम-पज्जत-जीव-रासि-पमाणं होदि । पुढवि = रि १०६४ । आउ = रि १९ १९६५ । तेउ = रि, | वायु = रि१९९५ । अर्थ–पुनः पृपिवीकायिकादि जीवोंकी प्रत्येक सूक्ष्मराशिको अपने योग्य संख्यात रूपोंसे खण्डित करनेपर बहुमागरूप सूक्ष्म पर्याप्त जीव राशिका प्रमाण होता है । विशेषार्थ-पृथिवीकायिक सूक्ष्म पर्याप्त राशि=Z० मध्म रा ( बहुभाग )। या = रि १६ । जलकायिक सूक्ष्म पर्याप्त राशि-ज० सूक्ष्म रा० या = रि १० । तेजस्कायिक सूक्ष्म पर्याप्त राशि ते० सूक्ष्म रा० सख्यात या = रि । वायुकायिक सूक्ष्म पर्याप्त राशि वायु० सूक्ष्म रा० सख्यात या = रि १० १० १९६४ तत्यंगभाग सग-संग-सुहुम-अपज्जत्त-रासि परिमाणं होवि । पुढवि = र १० ; रि १० १०५ = रि १० १० १०८ ९ ५ सस्यात रि८
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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