SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माथा : २८२] पंचमो महायिारो [ १४६ अर्थ-इसमें से एक भागरूप अपनी-अपनी सूक्ष्म अपर्याप्त जीवराशिका प्रमाण होता है । विशेषार्थ-पृथिवी सूक्ष्म अपर्याप्त राशि =रि १६ । जलकायिक सूक्ष्म अपर्याप्त राशि = रि तेजस्कायिक सूक्ष्म अपर्याप्त राशि = रि वायुकायिक सूक्ष्म अपर्याप्त राशि = रि १० १० १०६। [ तालिका को अगले पृष्ठ पर देखिये ] सामान्य बनससिकायिक जीवोंका प्रमाणपुणो सम्व-जीव-रासीदो सिद्ध-रासि-तसकाइय-पुढविकाइय-आउकाइय-सेउकाइय-बाउकाइय जीवरासि पमाणमणिदे अवसेसं सामण्ण-वणप्फविकाइय-जीवरासि परिमाणं होदि ॥१३॥ अर्थ–पुनः सब जीवराशिमेंसे सिद्धराशि, सकायिक, पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवोंके राशि-प्रमाणको घटा देनेपर शेष सामान्य वनस्पतिकायिक जीवराशिका प्रमाण होता है ।।१३।। विशेषार्थ-सामान्य वन० जीवराशि = [सर्व जीवराशि] रिया { (सिद्ध) धण (स) धरण (तेज०) धरण (पृ० ) धरण (जल) घण (वायु)} __ या [१६] – { (३) + (1) + (= रि) + ( = रि ) + ( = रि 3) + ( =रि 912.3% )} या १३ – ( ( है ) +=रि ( ३ + 2 + १४+३५६° )} या १३ – ६ ( ) +=रि s}
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy