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तिलोषपाती
एतो चोत्तीस - विहाणं तिरिक्खाणं परिमाणं उच्चदे
अर्थ - यहसि आगे चौंतीस प्रकार के तिर्यञ्चों का प्रसारण कहते हैं--- जिस्कायिक जीव राशिका उत्पादन विधान-
[ गाथा २८२
गुरु पाइरिय-परा-गदोवदेसेण ते उक्काइय- रासि उपायण- विहाणं इसाम । तं जहा - एग 'घणलोगं सलागा- सूदं ठविय श्रवरेगं घणलोगं विरलिय एक्क्क - वस्स घरगलोगं दादूण वग्गिद संवग्गिदं करिय सलागा-रासोदो एगरूवमवणेपव्वं । ताहे एका अण्णोष्ण- गुणगार - सलागा लद्धा हवंति । तस्सुप्पण्ण-रासिस्स पलिदो - मस्त प्रसंखेज्जदिभागमेत्ता वग्ग सलागा हवंति । तस्सद्धच्छेदणय- सलागा असंखेज्जा लोगा, रासी वि असंखेज्जलोगमेत्तो जादो ।
अर्थ- सूत्रसे अविरुद्ध आचार्य परम्परासे प्राप्त उपदेश के अनुसार तेजस्कायिक राशिका उत्पादन- विधान कहते हैं । वह इसप्रकार है- एक घनलोकको शलाकारूपसे स्थापित कर और दूसरे घनलोकका विरलन करके एक-एक रूप के प्रति घनलोक प्रमाणको देकर और वर्गित संबंगित करके शलाका राशिमेंसे एक रूप कम करना चाहिए। तब एक अन्योन्यगुणकार शलाका प्राप्त होती है । इसप्रकार से उत्पन्न हुई उस राशिकी वर्गालाकाएँ पत्योपमके असंख्यातवें भाग-प्रमाण होती हैं । इसीप्रकार की अर्धच्छेदशलाकाएँ प्रसंख्यात लोक प्रमाण और वह राशि भी असंख्यात लोक प्रमाण होती है ।
पुणो दि महारासि विरलिदृण तत्थ एक्केषक बस्स उद्विद- महारासि - प्रमाणं दादूण वग्गिद संवग्गिदं करिय सलागा-रासीदो श्रवरेगरुवमवणेयवं । ताहे" अण्णोष्ण- गुणगार सलागा दोषिण, वग्ग-सलागा अद्धच्छेदणय-सलागा रासो च प्रसंखेज्जा लोगा । एवमेदेण कमेण णेदब्बं जाव लोगमेत्त- सलागा - रासी समत्तोति । ताहे अण्णोषणगुणगार-सलामा पमाणं लोगो', सेस - तिगमसंखेज्जा लोगा ।
अर्थ -- पुनः उत्पन्न हुई इस महाराशिका विरलन करके उसमेंसे एक-एक रूपके प्रति इसी महाराशि-प्रमाणको देकर और वर्गित संवर्गित करके शलाकाराशिमेंसे एक अन्य रूप कम करना चाहिए | इससमय अन्योन्य-गुणकार शलाकाएं दो और वर्गशलाका एवं अर्धच्छेद-शलाका - राशि असंख्यातलोक-प्रमाण होती है। इसप्रकार जब तक लोक प्रमाण शलाकाराशि समाप्त न हो जावे तब तक इसी क्रमसे करते जाना चाहिए। उस समय अन्योन्यगुरण कार - शलाकाएँ लोकप्रमाण और शेष
१. द. ब. क. ज. पुणलोगस्स । २. द. ब. क. ज. पुणलोगं । ३. ८. ब. एक्केवर्क सदस्य । ४. द. क्र. ज. इद्रिद, व. ईट्ठिद । ५. द ब. क. ज. ता जह। ६ द. ब. क. ज. लोगा ।