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गाथा : २८२ ]
पंचमो महाहियारो
[ १३९ तिर्यञ्च त्रस जीवों के १० भेद और कुल ३४ भेद---- वियला बि-ति-च-रक्खा, सयला सण्णी असण्णिणो एदे । पज्जस्तेवर - मेदा', चोत्तीसा अह अणेय - विहा ॥२८२।।
पृथिवी० ४ अप० ४ | तेज. ४ | वायु ४
साधा० ४ पनय ४
बा० सू० । बा० सु० | बा० सू० बा० सू० | बा० सू० । प० प्र०
बि०२ | ति०२ | च० २ | असंज्ञी २ १ संज्ञी २ | प०अ० | ५० प्र० । ५० प्र० । ५० अ० | १० अ० ।
एवं जीव-भेद-परूवणा गदा ॥६॥ अर्थ-दोइन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चार इन्द्रियके भेदसे विकल जीव तीन प्रकार के तथा संज्ञो और असंज्ञीके भेदसे सकल जीव दो प्रकारके हैं। ये सब जीव ( १२+३+२ ) पर्याप्त एवं अपर्याप्तके भेदसे चौंतीस प्रकारके होते हैं । अथवा अनेक प्रकारके हैं ।।२८२॥
विशेषार्थद्वीन्द्रिय २ वीन्द्रिय २ चतुरिन्द्रिय २ पंचेन्द्रिय ४
पर्याप्त
अप०प०
अ०
Ca
५०
अ०
संजी
प्रसंज्ञी
प० अ० प० अ० इसप्रकार एकेन्द्रियके २४, द्वीन्द्रियके २, त्रीन्द्रियके २, चतुरिन्द्रियके २ और पंचेन्द्रियके ४, ये सब मिलकर तिर्यञ्चोंके ३४ भेद होते हैं।
इसप्रकार जीवोंकी भेद-प्ररूपणा समाप्त हुई ॥६।।
१. ६. ब. क.अ. भेदो।