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________________ १३८ ] तिलोय पण्णत्तो साहारण पत्तेय - सरीर वियप्पे वणप्फई' साहारा यूलिदरा, पदिडिदिवरा' य · बादर पृथिवीका० ४ जलका० ४ - अथं - एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और सकलेन्द्रिय जीव कहे जाने वाले क्रमसे बारह, तीन और दो भेदरूप हैं । इनमें से एकेन्द्रियोंमें पृथिवी, जल, तेज और वायु, ये प्रत्येक बादर एवं सुक्ष्म होते हैं । साधारण शरीर और प्रत्येक शरीरके भेदसे वनस्पति कायिक जीव दो प्रकार हैं। इनमें साधारणशरीर जोब बादर और सूक्ष्म तथा प्रत्येक शरीरें जीव प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित ( के भेदसे दो-दो प्रकारके ) होते हैं ।। २८०-२६१।। T विशेषार्थ एकेन्द्रियोंके २४ भेद तेजका० ४ | सूक्ष्म बा० सू० बा० वायुका ० ४ [ गाथा : २८१ सू० बा० दुविहा । पसेयं ॥ २८१ ॥ वनस्पतिकायिक सू० साधारण प्रत्येक पर्याप्त अप०प० अ० प० अ० प० अ० प० अ० प० अ० प० ० ० ० बादर सू० प्रति० श्रप्रति० प० अप० प० प्र० प० अ० प० अप० १. द. ब. क. ज. वणप्पई । २. द. ब. क. ज. धूलि दिदा । ३. द. व क.अ. परिदिट्ठिदिरा 1
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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