________________
गाथा : २८० ] पंचमी महाहियारो
[ १३७ अर्थ-लवणसमुद्रको आदि लेकर इच्छित द्वीप-समुद्रोंकी प्रायाम-वृद्धिके प्रमाणको प्राप्त करने हेतु यह माथा-सूत्र है
धातकीखण्डको आदि लेकर द्वीप-समुद्रोंके विस्तारको आधा करके उसे नौसे मुरिणत करने पर प्राप्त राशि प्रमाण अधस्तन द्वीप या समुद्रसे उपरिम द्वीप या समुद्रके मायाममें वृद्धि होती है ॥२७९॥
विशेषार्थ-इसी अधिकारकी गाथा २४४ के नियमानुसार लवणसमुद्रका अायाम [( २ लाख – १ लाख )xt=९ लाख योजन, धातकीखण्ड द्वीपका [ ( ४ लाख --- १ लाख) xt] =२७ लाख योजन और कालोदक-समुद्रका ६३ लाख योजन है । अधस्तन द्वीप-समुद्रके आयाम प्रमाणसे उपरिम द्वीप-समुद्रके भायाममें वृद्धि-प्रमाण प्राप्त करने हेतु उपयुक्त गाथानुसार सूत्र इस प्रकार है
वणित वृद्धि इष्ट द्वीप – समुद्रका विस्तार
उदाहरण-(१) मानलो–यहाँ कालोदक समुद्र इष्ट है । जिसका विस्तार ६ लाख योजन है अतः
वणित वृद्धि -- ८०४.० यो०४९-३६००००० यो० ।
धातकीखण्डद्वीपके २७ लाख योजन आयाममें ३६००००० यो० की वृद्धि होकर कालोदकसमुद्रके आयामका प्रमाण ( २७ लाख +३६ लाख= ) ६३ लाख योजन प्राप्त होता है।
(२) स्वयम्भूरमणसमुद्रका विस्तार : राजू + ७५००० योजन है। अतएव उपयुक्त नियमानुसार स्वयम्भूरमणद्वीपके आयामसे उसकी अायामवृद्धिका प्रमाण इसप्रकार होगाआयाम वृद्धि= राजू +७५००० यो००
= राजू + ३३७५०० योजन । अर्थात वृद्धिका प्रमाण ! राज+३३७५०० यो० =
( स्वयंभूरमणसमुद्रका प्रायाम ६ रा० – २२५००० यो० ) – ( स्वयम्भूरमणद्वीपका आयाम रा० - ५६२५०० यो०)। इसप्रकार द्वीप-समुद्रोंके नाना प्रकारके क्षेत्रफलका प्ररूपण समाप्त हुआ ।।५।।
तिर्यञ्च जीवोंके भेद-प्रभेदएयक्ख-वियल-सयला, बारस तिय दोषिण होंति उत्त-कमे। भू - आउ - तेउ - वाऊ, पत्तेक बावरा सुहमा ॥२०॥