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तिलोय पण्णत्तो
उन्नीसवाँ - पक्ष
अधस्तन द्वीप समुद्र से उपरि त्रीप-समुद्र के आयाम में वृद्धिका प्रमाणएकवीसदिम-पव अप्पबहुलं वत्तइस्तामी । तं जहा — लवणसमुद्दस्सा यामं व-लखं, तम्मि अट्ठारस लक्खं संमेलिदे धादईसंडदोवस्त ग्रायामं होदि । बादईसंडदीवस्स' प्रायामम्मि पक्खेबभूव अट्ठारस- लक्खं दु-गुणिय मेलिदे कालोद समुहस्स होइ । एवं पक्खेयभूद अट्ठारस लक्खं दुगुण-दुगुणं होऊण गच्छद्द जाव सयंभूरमणसमुद्दति ॥
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श्रर्थ - उन्नीसवें पक्ष में अल्पबहुत्व कहते हैं-लवरणसमुद्रका आयाम नौ लाख है । इसमें श्रठारह लाख मिलानेपर धातकीखण्डका श्रायाम होता है । धातकीखण्डके आयाम में प्रक्षेपभूत अठारह लाख को दुगुना करके मिलाने पर कालोदक समुद्र का आयाम होता है । इसप्रकार स्वयम्भूरमणसमुद्र पर्यन्त प्रक्षेपभूत ग्रठारह लाख दुगुने दुगुने होते गये हैं ।
स्वयम्भूरमाद्वीप के आयाम स्वयं समुद्रके आयाम में वृद्धि का प्रमाण
| गाथा : २७९
तत्य ग्रंतिम विययं वत्तइस्लामो - तत्थ सयंभूरमण-दीवस्स प्रायामादो सयंभूरमणसमुहस्स श्रायाम-चड्ढी णव- रज्जूणं श्रदुम-भागं पुणो तिष्णि-लक्ख सचतीससहस्स-पंचसय जोयहं अन्भहियं होइ । तस्स ठवणा - ७ । ६ क्षण जोयाणि ३३७५०० ।
अर्थ-यहाँ अन्तिम त्रिकल्प कहते हैं- स्वयम्भूर मरण द्वीप के आयामसे स्वयम्भूरम ए समुद्र के आयाममें नौ राजुओंके आठवें भाग तथा तीन लाख सैंतीस हजार पांच सौ योजन अधिक वृद्धि होती है । उसकी स्थापना – राजू + ३३७५०० यो० ॥
आयाम वृद्धि प्राप्त करने की विधि
लवणसमुद्दादि - इच्छिय दीव- रयणायराणं आयाम - वड्ढि पमाणाणयण हेदु इमं गाहा-सुतं -
धावइसंड- प्पहूदि इच्छिय दीवोबहीण वित्थारं ।
अयि तं वहि गुणं, हेद्विमयो होदि उवरिमे बढी ॥२७६॥
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एवं दोबोधहोणं णाणाविह खेत्तफल- परूवणं समत्तं ॥ ५ ॥
१. द. ब. दोवे ।
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