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तिलोय पण्णत्ती
स्वयम्भूर मरणसमुद्रकी तीनों सूचियां प्राप्त करने की विधि-
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तत्थ अंतिम वियष्वं यत्तत्साम तं जहा संयंभूरमणकीवस्स प्राविम-सूईमज्झे रज्जूए चउब्भागं पुणो पंचहत्तरि सहस्स जोयणाणि संमिलिदे सयंभूरमणसमुहस्स आदिम-सूई होदि । तस्स ठेवणा- ७ । ४ धण जोयणारि ७५००० । पुणो तद्दोवस्स मज्झिम सुइम्मितिय रज्जूणं श्रट्टम-भाग पुणो एक्क- लक्ख बारस- सहस्स-पंचसय जोयणाणि संमिलिदे सयंभूरमण समुद्दस्स मज्झिम- सूई होइ । तस्स ठवणा - ७ । धण जोयणाणि । ११२५०० । पुणो सयंभूरमणवीवस्स बाहिर सूई- मज्के रज्जूए 'अद्ध ं पुणो विवड्ढ - लवखजोयणाणि समेलिदे चरम समुद्द अंतिम सूई होइ । तस्स ठेवणा- ७ । २ धण जोयणाणि १५००
अर्थ - उनमें अन्तिम विकल्प कहते हैं । वह इसप्रकार है- स्वयम्भूरम रणद्वीपकी श्रादिम सूची में राजू के चतुर्थ-भाग और पचहत्तर हजार योजनों को मिलाने पर स्वयम्भूरमण समुद्रकी आदिम सूची होती है । उसकी स्थापना- राजू + ७५००० यो० । पुनः इसी द्वीपको मध्यम सूची में तीन राजुओं के आठवें भाग और एक लाख बारह हजार पाँच सौ योजनों को मिलाने पर स्वयम्भूरमणसमुद्र की मध्यम सूची होती है। उसकी स्थापना राजू + ११२५०० यो० । पुनः स्वयम्भूरमणद्वीपकी बाह्य सूचीमें राजूके अर्ध भाग और डेढ़ लाख योजनोंको मिलानेपर उपरिम (स्वयम्भूरमण ) समुद्रको अन्तिम सूची होती है। उसकी स्थापना - रा० + १५०००० यो० ॥ एत्थ वढोण प्राणयण हे दुमिमा सुत्त गाहा-
[ गाथा : २७८
धाasis - पहुवि इच्छ्रिय दीवोवहीण संबद्ध । दु-ति-च-रूवेहि, हवो ति द्वाणे होदि वरिवड्ढी ॥ २७८ ॥
अर्थ - यहाँ वृद्धियों को प्राप्त करने हेतु यह गाथा सूत्र है
घातकीखण्ड श्रादि इच्छित द्वीप - समुद्रों के आधे विस्तारको दो, तीन और चारसे गुणा करने पर जो प्रमाण प्राप्त हो क्रमसे तीनों स्थानों में उतनी वृद्धि होती है || २७८ ||
विशेषार्थ - गाथानुसार सूत्र इसप्रकार है-
इष्ट द्वीप या समुद्रका विस्तार
२
क्रमशः तीनों वृद्धियाँ =
x क्रमशः २, ३ र ४ ।
१. द. ब. ज. पिंडं । २. द. ब. ज. मेलिषोपरिम, क. मेलिदोवरिम |