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________________ गाभा : २७७ १३२ ] तिलोयपणाती अहिय-पमाणमाणयण-हेदुमिमा सुत्त-गाहा खीरवरदीव-पदि, उपरिम-दीवस्स दोह-परिमाणं । चउ - लक्खे संगुणिदे, परियड्डो होइ उघश्वरि ।।२७७।। अर्थ--अधिक प्रमाण प्राप्त करने हेतु यह गाथा-सूत्र है-- क्षीरवरद्वीपको 'ग्रादि लेकर उपरिम द्वीपकी दीर्घताके प्रमाण अर्थात आयामको चार लाखसे गुणित करने पर ऊपर-ऊपर वृद्धिका प्रमाण होता है ।।२७७॥ विशेषार्थ- गाथानुसार सूत्र इसप्रकार है---- वाणन वृद्धि होपका आयाम ) x ४००००० उदाहरण-(१) क्षीरवर द्वीपका पायाम २२९५००००० योजन है। =२२९५००...४४००००० =९१८००००००००००० वर्ग योजन । यह क्षीरवरद्वीपसे अधस्तन ( पहलेके ) द्वीपोंके क्षेत्रफलसे १५ गुना होकर अधिकका प्रमाण है । जो क्षीरवरद्वीपमें प्राप्त होता है । (२) अश्वस्तन द्वीपोंके क्षेत्रफलसे १५ गुना होकर जो अधिकताका प्रमाण स्वयम्भूरमणद्वीपमें पाया जाता है वह इसप्रकार है स्वयम्भूरमणद्वीपवा आयाम राजू-५६२५०० योजन वृद्धि-प्रमाण-क्षेत्रफल - ( रा०-५६२५०० यो०) ४४००००० यो० =४५०००० रा० यो० – २२५४ (१०) वर्ग यो० इसलिए स्वयम्भूरमणद्वीपका क्षेत्रफल = राजू २-४७८१२५ रा. यो.+ २०३९०६२५०००० वर्ग यो० सातिरेकका प्रमाण ४५०००० रा. यो०-२२५००००००००० वर्ग योजन -- राजू२-२८१२५ रा. बो०-२१०९३७५०००० वर्ग योजन ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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