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________________ १३० ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : २७६ तस्स ठवणा- ३० । धण जोयणाणि १३५६३७५०००० । रिण रज्जू ७ । ३१८७५ । अर्थ-स्वयम्भूरमगाद्वीपके अधस्तन सब द्वीपोंके क्षेत्रफलका प्रमाण राके वर्गको तिगुना करके तीनसौ बीसका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें एक हजार तीन सौ सनसठ करोड़ सैंतीस लाख पचास हजार योजन अधिक तथा इकतीस हजार आठ सौ पचहत्तर योजनोंसे गुणित राजसे होन है । उसकी स्थापना( A) + १३५९३७५०००० यो० .- ( रा०४३१८७५ ) । स्वयम्भूरमणद्वीपका क्षेत्रफलसयंभूरमणदीवस्स खेत्तफलं रज्जूए कदी णव-रूबेहि गुणिय चउसट्टि - हवेहि भजिदमेतं, पुणो रज्जू ठविय अट्ठावीस-सहस्स-एक्कसय-पंचवीस'-रूवेहि गुणिवमेतं, पुणो पण्णास-सहस्स-सत्ततीस-लक्ख-रणव-कोडि-अभहिय-वोण्णि-सहस्स-एक्सय-कोडि-जोयण, एदेहि वह रासीहि परिही मुश्विाल रासी होदि । तस्स ठवणा-।। रिण रज्जओ । २८१२५ रिण जोयणाणि २१०६३७५०००० । अर्थ-स्वयम्भूरमरणद्वीपका क्षेत्रफल राजूके वर्गको नौसे गुणा करके चौंसठका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसमेंसे, राजूको स्थापित करके अट्ठाईस हजार एक सौ पच्चीससे गुणा करनेपर जो राशि उत्पन्न हो उसको तथा दो हजार एक सौ नो करोड़ सैंतीस लाख पचास हजार योजन, इन दो राशियोंको कम कर देनेपर अवशिष्ट पूर्वोक्त राशि प्रमाण है। उसको स्थापना-[ ९ (राजू)२] -( १ राजू x २८१२५ ) --२१०९३७५०००० । अभ्यन्तर समस्त द्वीपोंका क्षेत्रफल प्राप्त करनेकी विधिअभंतरिम-सव्य-दीव-खेत्तफलं मेलावेदूरण आणयण-हेतुमिमा सुत्त-गाहा विक्खंभायामे इगि सगोसं लक्समवणमंतिमए । पण्णरस-हि लद्ध, इच्छादो हेडिमाण' संकलणं ॥२७६।। अर्थ-अभ्यन्तर सब द्वीपोंके क्षेत्रफलको मिलाकर निकालने के लिए यह गाथा-सूत्र है १. द ब. ज. पंचवीससहस्स | २. द. ब. क. ज. पणारससहस्स । ३. द. हेष्टिमाह ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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