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तिलोमसी
४८३८४= ( २८८० × १६ खं० श० ) + [ २३०४ खं० श० ४ ७५४ (१०) ' ]
X
= २८५० x १६+१७२८०००००००००० वर्ग योजन 1
इससे आग अधस्तु
क्षेत्रफल रिम द्वीपका क्षेत्रफल अन्तिम द्वीप पर्यन्त क्रमशः १६ गुना होने के अतिरिक्त प्रक्षेपभूत १७२८४ (१०) १० वर्ग योजनोंसे भी चोगुना होता गया है।
यथा
[ गाथा : २७४
मानलो - क्षोरवरद्वीप इष्ट है । इसका विस्तार २५६ लाख योजन और खण्डशलाकाएं ७८३३६० हैं -
७८३३६० खं० श० - (४८३८४४१६ खं० श० ) - ६२९६ खं० श० वारुणी द्वीपसे
अधिक हैं
७८३३६०- ( ४८३८४ X १६ खं० श० ) + ( ९२१६७५४ (१०)
= ( ४८३८४४१६ खं० श० ) + ६९१२०००००००००० वर्ग योजन । क्षीरवरद्वीपका यह ६९१२४ ( १० ) १० वर्ग योजन प्रक्षेप वारुणीवरद्वीप के १७२८४ (१०) १० वर्ग योजनसे ४ गुना है ।
एत्थ विभायाम खेत्तफलाणं अंतिम वियध्वं यत्तइस्सामो
श्रथ - उनमें विस्तार, आयाम और क्षेत्रफलका अन्तिम विकल्प कहते हैं-श्रहीन्द्रवरद्वीपका विस्तार और प्रायाम
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विरदीचस्स विषखंभं रज्जूए बत्तीसम-भागं पुणो णव सहस्स- तिष्णि-सयपंचसरि जोयणेहि प्रभहियं होदि । श्रायामं णव- रज्जू उविय बत्तीस रूबेहि भागं धत्तूण पुणो अट्ठ-लख- पण्णारस - सहस्स छस्सय पणवीस जोयणेहि परिहीणं होइ । तस्स ठेवणा। ३२ पण जोयणाणि ६३७५ । आयामं ७ । । रिण जोयणाणि ८१५६२५ ।
अर्थ- हीन्द्रवरद्वीपका विस्तार राजूके बत्तीसवें भाग और नौ हजार तीन सौ पचास योजन अधिक है तथा इसका आयाम नौ राजुओंको रखकर बत्तीसका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें से आठ लाख पन्द्रह हजार छह सौ पच्चीस योजन हीन है । उसकी स्थापना इसप्रकार है
विस्तार == राजू १३ + ६३७५ यो० । आायाम = राजू 3 = १५६२५ यो० ।
राजू x २ + ६३७० योजन ।
विशेषा - श्रहीन्द्रवरद्वीपका विस्तार इसी द्वीपका आयाम = ( राजू X ३३ + ९३७० १०००००) ४९ = ९ राज - ( ९०६३० ४९ ) = ९ राजू - ६१५६७० योजन ।
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