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________________ गाथा ; २७४ ] पंचमो महाहियारो [ १२१ विशेषार्य-गाथानुसार सुत्र इसप्रकार हैवरिणत सातिरेकता = ( समुद्रको तीनों सूचियोंका योग )x४०००००-१८ x (१०). उदाहरण बारुणीवर समुद्र । -(२५३०००००+३८१००००० + ५०९००००० ) x ४००००० सम्बन्धी सातिरेकता । -१८०००००००००० । -- ४५५४०००००००००० वर्ग योजन । स्वयम्भूरमणसमुद्रकी अभ्यन्तर सूची ३ राजू-१५०००० योजन है, मध्यम सूची। राजू-७५००० यो० और बाह्य सूची १ राजू प्रमाण है । इन सूचियोंके सम्बन्धसे उक्त समुद्र सम्बन्धी ( रा०-१५००००) (१ रा.–७५००० यो०) + (१ राजू ) ] x सातिरेकता ४०००००–१८४(१०)१० यो । = [ रा० + ३ रा. + १ रा०)- २२५००० यो० ] x ४००००० - १८०००००००००० यो । - राजू ४४०००००)-९०००००००००० --- १००००००००००० योजन । -- ९००००० राजू--२७४ (१०)१° यो० । अधस्तन समुद्रोंके क्षेत्रफलका प्रमाण= [.(राज) ..५२५०० रा०४ यो +१६८७५४ (१०) वर्ग यो०] है। इसमें १५ का गुणाकर उपयुक्त सातिरेकताका प्रमाण जोड़ देनेपर स्वयंभूरमण समुद्रका क्षेत्रफल प्राप्त होता है | यथास्वमं० स० का क्षेत्र०=[* राजू -- ५२५०० रा०४ यो० + १६८७५४ (१०)"] x १५ + ९००००० रा०-२७४(१०) वर्ग योजन
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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