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१२० ] तिलोयपण्पत्ती
[ गाथा : २७४ उदाहरण-१. पुष्करवर समुद्रका विस्तार ३२००००० योजन और पायाम २७९००००० योजन है। वणित क्षेत्रफल - ( ३२०००००-३०००००) x (२७९००००० -- ९०००००)
_२६०००००४२७००००००
-५२२०००००००००० वर्ग योजन।
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यह पुष्करवर समुद्रके पूर्व स्थित लवण और कालोदसमुद्रका सम्मिलित क्षेत्रफल है । २. स्वयम्भूरमणसमुद्रसे अधस्तन समस्त समुद्रोंका क्षेत्रफल -- स्वयम्भूरमणसमुद्रका विस्तार = राजू + ७५००० योजन ।
स्वयम्भूरमणसमुद्रका अायाम = ९ राज – २२५००० योजन । स्वयं० समुद्रसे अधस्तन] _राजू + ७५०००-३००००००] » । राजू-२२५०००यो०-९०००००] समुद्रों का क्षेत्रफल ।
= [ राजू – २२५०००]x [ राजू – ११२५००० -९ राजू राजू [EX २२५०.०४ ११२५००० यो०]+(२२५००० x ११२५००० यो०)
__३(राजू)
७८७५०० राजू यो
२५३१५४ (१०) वर्ग योजन ।
-३ (राजू) -५२५०० राज यो०+ १६८७५४ १०' वर्ग योजन । यहां राजू योजन का अर्थ है राजुओका योजनोंके साथ गुणा करना । सादिरेय-पमारणमारणयरण-णिमित्तं गाहा-सुत्तं
तिविहं सूइ-समूह, वारुणिवर-उवहि-पहुवि-उरिल्लं ।
चउ-लक्ख-गुणं अहियं, अदरस-सहस्स-कोडि-परिहोणं ।।२७॥ प्रपं--सातिरेक प्रमाण प्राप्त करने हेतु यह गाथा सूत्र है
वारुणीवरसमुद्र आदि उपरिम समुद्रकी तीनों प्रकारकी सूचियोंके समूहको चार लाखसे गुणा करके प्राप्त राशि मेंसे अठारह हजार करोड़ कम कर देनेपर अधिकताका प्रमाण आता है ।।२७४।।