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________________ गाथा : २७२ ] पंचमो महाहियारो [ ११७ अर्थ - पन्द्रहवें पक्षमें अल्पबहुत्व कहते हैं। वह इस प्रकार है- लवरणसमुद्र क्षेत्रफल से कालोदकसमुद्रका क्षेत्रफल अट्ठाईस गुरणा है । लवणसमुद्र सहित कालोदक समुद्रके क्षेत्रफलसे पुष्करवरसमुद्रका क्षेत्रफल सत्तरह गुणा होकर चौवन हजार करोड़ योजन अधिक है ५४०००००००००७ । लवण एवं कालोद सहित पुष्करवरसमुद्रके क्षेत्रफलसे वारुणीवर-समुद्रका क्षेत्रफल पन्द्रह गुना होकर पैंतालीस लाख चौवन हजार करोड़ योजन अधिक है ४५५४००००००००००। इसप्रकार वारुणीवरसमुद्रसे सब अधस्तन समुद्रांके क्षत्रफल समूहसे उपरिम समुद्रका क्षेत्रफल प्रत्येक पन्द्रह-गुरणा होनेके अतिरिक्त प्रक्षेपभूत पैंतालीस लाख चौवन हजार करोड़ योजनोंसे चोगुणा होकर एक लाख बासठ हजार करोड़ योजन अधिक है १६२०००००००००० इसप्रकार यह क्रम स्वयम्भूरमण - समुद्र पर्यन्त जानना चाहिए || विशेषार्थ - लवणसमुद्रके क्षेत्रफल से कालोदकका क्षेत्रफल २८ गुना है । यथा =६७९=२४४२८ खण्डशलाका स्वरूप है । लवणसमुद्र और कालोदकके ( २४ + ६७२ - ६९६ खण्डशलाकारूप ) क्षेत्रफलसे पुष्करवर समुद्रका ( ११९०४ खं० श० रूप ) क्षेत्रफल १७ गुना होकर [ ११९०४ – (६९६४१७) = ७२ खं० श० रूप ] ५४४ (१०) १० वर्ग योजन अधिक है । यथा वृद्धि सहित क्षेत्रफल ११९०४ = (६९६ × १७ खं० श० ) + ( ७२७५०००००००० ) = ( ६९६ × १७ खं० श० ) + ५४०००००००००० वर्ग योजन । लवणसमुद्र, कालोदक प्रौर पुष्करवरसमुद्रके ( २४ + ६७२ + ११९०४ = १२६०० खं० श० रूप ) क्षेत्रफलसे वारुणीवर समुद्रका ( १९५०७२ खं० श० रूप ) क्षेत्रफल १५ गुना होकर [१९५०७२ - (१२६००×१५) ६०७२ | खं० श० रूप ) ] ४५५४ ४ (१०) १० वर्ग योजन अधिक है । यथा— वृद्धि सहित क्षेत्रफल १९५०७२ खं० श० रूप- ( १२६००×१५ खं० श० ) + [ ६०७२ खं० श० X ७५ x ( १० ) ] = ( १२६०० × १५ खं० श० ) + ४५५४०००००००००० वर्ग यो ა इसप्रकार वारुणीवर समुद्र से लेकर सर्वं प्रधस्तन समुद्रोंके क्षेत्रफल समूह उपरिम समुद्रका क्षेत्रफल प्रत्येक १५ गुना होनेके अतिरिक्त प्रक्षेपभूत ४५५४ (१०) १० से ४ गुना होकर १६२४ (१०) १० वर्ग योजन प्रधिक है । यथा वारुणीवरसमुद्रसे उपरिम क्षीरवर समुद्रका विस्तार ५१२ लाख योजन है और इसकी खं० श० ३१३९५८४ हैं । जो लबसमुद्र, कालोबकसमुद्र, पुष्करवरसमुद्र और वारुणीवर समुद्रको
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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