________________
११६ ] तिलोयपणती
[ गाथा : २७२ अदिरेयस्स पमाणं आणयण-हेदु इमं गाहा-सुत्तं--
वाररिगवरावि-उपरिम-इच्छिय-रयणायरस्स रुवातं ।
सत्तायीसं लक्खे गुणिदे, अहियस्स परिमाणं ॥२७२॥ अर्थ-अतिरेकका प्रमाण प्राप्त करने हेतु यह गाथा-सूत्र है
वारुणीवर समुद्रको प्रादि लेकर उपरिम इच्छित समुद्रके विस्तारको सत्ताईस लाखसे गुणा करने पर अधिकतन: प्रासाला होता है ।
विशेषार्थ-गाथानुसार सूत्र इस प्रकार हैवरिणत अतिरेक धन- ( उपरिम इच्छित समुद्रका विस्तार) x २७००००० ।
उदाहरण-मानलो-यहां क्षीरवरसमुद्रका अतिरेक धन प्राप्त करना इष्ट है। जिसका विस्तार ५१२००००० योजन है अतः क्षीर० स० का अतिरेक धन=५१२०००००४ २७००००० ।
=१३८२४०००००००००० योजन ।
पन्द्रहवाँ-पक्ष अधस्तनसमुद्रके ( पिण्डफल+प्रक्षेपभूत ) क्षेत्रफलसे उपरिम समुद्रका
क्षेत्रफल कितना होता है ? पण्णारस-पक्खे अप्पबहुलं वत्तइस्सामो-तं जहा-लवरणसमुहस्स खेत्तफलादो कालोगसमुहस्स खेत्तफलं अट्ठावीस-गुणं । लवणसमुद्द-सहिद-कालोगसमुहस्स खेत्तफलादो पोक्लरवरसमुहस्स खेत्तफलं सत्तारस-गुणं होऊण चउवण्ण-सहस्स-कोरि-जोयणेहि प्रभहियं होदि ५४०००००००००० । लवण-कालोदग-सहिद पोक्खरवर-स मुद्दस्स खेत्तफलादो वारुणिवर-णीररासिस्स खेत्तफलं पण्णारस-गुणं होऊण पणदाल-लक्ख-चउवष्णसहस्स-कोरि-जोयणेहि अउहियं होइ ४५५४०००००००००० । एवं वारुणिवरणोरगसिप्पहवि-हेछिम-णीररासीणं खेत्तफल-समूहावो उरिम-णिण्णगणाहस्स खेचफलं पत्तेय पण्णारस-गुणं पक्खेवमूद-पणदाल-लक्ख-घउवण-सहस्स-कोडीयो चउग्गुणं होऊण पुणो एक्क-लक्ख-बासट्ठि-सहस्स-कोरि-जोयणेहि अमहियं होइ १६२०००००००००० । एवं दव्यं जाय सयंभूरमणसमुद्दो त्ति ।