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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : २७२
( २४+६७२ + ११९०४ + ११५०७२ ) - २०७६७२ सम्मिलित खण्डशला काओंसे १५ गुना होकर [३१३९५८४ - (२०७६७२४ १५ ) + २४५०४ खण्ड श० रूप ] ४५५४ ४ (१०) १० वर्ग योजनका ४ गुना होते हुए १६२ (१०) १० वर्ग योजन अधिक है । यथा
क्षी० स० का क्षेत्र० ३१३९५८४ खं० श० रूप- ( २०७६७२ बं० श० x १५ ) + (२४५०४ ० ० ) है ।
अथवा
२०७६७२ × १५ – ३११५०८० सं० श० रूप क्षेत्रफल + [ ४५५४ ४ (१०)१०x४= १-२१६४ (१०) ° ] + १६२०००००००००० वर्ग यो० है ।
अधिक धन प्राप्त करने की दूसरी विधि
क्षीरवर समुद्रके क्षेत्रफल में अधिक धनका प्रमाण १६२०००००००००० वर्ग योजन प्रमाण है । इस अधिक धनकी एक शलाका मानकर उपस्मि समुद्रका अधिक वन अस्तन समुद्रकी शलाकासे १ अधिक ४ गुना होता है। इसका सूत्र इसप्रकार है
इष्ट स० का अधिक धन = [ (अधस्तन स० की शलाका ४ ४ ) + १ ] x १६२४ (१०) १० घृतवरसमुद्रका अधिक धन == [ ( १x४ ) + १ ] × १६२४ (१०) १०
=५× १६२ × (१०) १० = ८१००००००००००० वर्ग योजन है ।
लवणसमुद्र से ग्रहीन्द्रवरसमुद्र पर्यन्त के सब समुद्रों के क्षेत्रफलका प्रमाण --
तर अंतिम वियप्पं वस इस्सामो सयंभूश्मण- णिण्गग णाहावी हेट्ठिम-सथ्यगोररासीणं वेत्तफल- पमाणं रज्जूए वग्गं ति-गुणिय असीदि-रूवेहि भजिवमेतं पुणो एक्कसहस्स छस्सय-सलसीदि को डि- पण्णास' - लक्ख-जोयणेहि अग्भहियं होदि पुणो बावण्णसहस्स-पंच-सय-जोयणेहि गुणिद-रज्जूहि परिहीणं होदि । तस्स लवणा – ।। धण जोयणाणि १६८७५०००००० रिण रज्जुप्रो ७५२५०० ।
अर्थ – इसमें से अन्तिम विकल्प कहते हैं
स्वयम्भूरमणसमुद्र के नीचे अधस्तन सब समुद्रोंके क्षेत्रफलका प्रमाण राजूके वर्गको तीनसे गुणा करके अस्सीका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतने प्रमाण होकर एक हजार छह सौ सतासी
१. ६. ब. क. ज. पण्णारस ।