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गाथा : २६९ ]
पंचमो महाहियारो
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अब यहाँ प्रक्षेपके ऊपर जो २०२५ (१०) - अधिक धन कहा गया है वह ऊपर-ऊपर किस विधिसे प्राप्त होता है ? उसे दर्शाते हैं
कालोद समुद्र के प्रक्षेपसे पुष्करवर द्वीपका प्रक्षेपभूत दुगुने से २०२५ (१०) वर्ग योजन अधिक है । इस २०२५ ४ (१०) वर्ग योजन अधिककी १ शलाका मानकर उपरिम द्वीप या समुद्रका यह अधिक धन अवस्तन द्वीप समुद्रकी शलाका से १ अधिक दुगुना है। इसका सूत्र इसप्रकार है
इष्ट द्वीप या स० का अधिक धन - [ ( अधस्तन द्वीप या स० की खण्ड श० x २ ) + १ ] ×२०२५× (१०) * ।
×× ]
पुष्करवर समुद्रका अधिक धन - [ ( १२ ) + १ ]x २०२५००००००००। - ३ x [ २०२५४ (१०) ० = ६०७५०००००००० वर्ग योजन है । अर्थात् पु० स० का अधिक धन - ( प्रक्षेप युक्त अधिक धन ) ( प्रक्षेप x ४ ) पु० समुद्रका प्र० धन ६०७५× (१०) ' = [ ५५५७५ × (१०) ' ] – [१२३७५ X (१०)
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वारुणीवर द्वीपका अधिक धन = [ ( ३x२ } +१]×२०२५× (१०) =१४१७५००००००००= [ ७२०२५०००००००० ] वर्ग योजन । इसीप्रकार आगे भी जानना चाहिए।
जम्बूद्वीप और स्वयम्भूर मरणसमुद्र के मध्य स्थित समस्त द्वीप- समुद्रों के क्षेत्रफलका प्रमाण
तत्थ अंतिम वियष्वं वत्तइस्लामो सयंमूरमण समुहस्स हेट्ठिम दोरा उथहाओ सव्वाओ जंबूदीव-विरहिदाओ ताणं खेत्तफलं रज्जूबे कढी ति-गुणिय सोलह भजिवमेतं, पुणो णव-सय-सत्तहोस - कोडि-प्रण्णास लक्ख-जोयणेहिं श्रम्भहियं होति । पुणो एक्क-लक्खबारस' - सहस्स पंच-सय- जोयणेहि गुणिद-रज्जूए होणं होवि । तस्स ठक्षणा -
श्रण जोयणाणि ६३७५०००००० रिण - रज्जूओ ७ । ११२५००
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अर्थ- इसमें से अन्तिम विकल्प कहते हैं- स्वयम्भूरमण समुद्र के नीचे जम्बुद्वीपको छोड़कर जितने द्वीप - समुद्र हैं उन सबका क्षेत्रफल राजूके वर्गको तिगुना करके सोलहका भाग देनेपर जो लब्ध
१. ब. बारसहस्स । २. द. ब. दवणा - ४६ । १६ ।