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________________ १०६ ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : २७० प्राप्त हो उतना और नो सौ सैंतीस करोड़ पचास लाख योजन अधिक एवं एक लाख बारह हजार पांच सौ योजन से गुणित राजूसे होन है । उसको स्थापना इस प्रकार है- ३×( राज )* ) +९३७५०००००० वर्ग यो० } — राजू ४ ११२५०० यो० ) ( १६ इट्टादो हेमि-दीवोवहीणं पिउफलमाणयण गाहा-सुतं- sfor-ataबहीए, विक्सभायामयम्मि अवर्णज्जं । इrि - ब लक्ख सेसं, ति हिवं इच्छा हेट्ठिमाणफलं ॥ २७० ॥ अर्थ — इच्छित द्वीप या समुद्रसे प्रधस्तन द्वीप समुद्रोंके पिण्डफलको प्राप्त करने हेतु यह गाथा सूत्र है इच्छित द्वीप या समुद्र विष्कम्भ एवं आयाममें से क्रमश: एक लाख और नौ लाख कम करे । पुनः शेष (के गुणनफल ) में तीनका भाग देनेपर इच्छित द्वीप या समुद्रके ( जम्बूद्वीपको छोड़कर ) अधस्तन द्वीप समुद्रों का पिण्डफल प्राप्त होता है ।। २७० ॥ विशेषार्थ -- गाथानुसार सूत्र इसप्रकार है- इष्ट द्वीप या समुद्रसे अधस्तन द्वीप - समुद्रोंका सम्मिलित पिण्डफल विस्तार 2 ( इष्ट द्वीप या स० का विस्तार १००००० ) x [ { ( इष्ट द्वीप या स० का १०००००)×९} ९००००० ] ÷३ । उदाहरण - मानलो--यहाँ नन्दीश्वर द्वीप इष्ट है । जिसका विस्तार १६३८४००००० योजन है ओर श्रायाम [ ( १६३८४००००० - १००००० ) x ९ = ] १४७४४७००००० योजन है । श्रतः लवणसमुद्र से क्षौद्रवरसमुद्रका पिण्डरूप - = क्षेत्रफल - ( १६३८४००००० १६३८३००००० X १४७४३८००००० - १००००० ) x (१४७४४७००००० ९ ला०)÷३ -- =८०५१५८९१५०००००००००० वर्ग योजन । इसोप्रकार जम्बूद्वीप और स्वयम्भूरमण समुद्रके मध्यवर्ती समस्त द्वीप- समुद्रोंका -
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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